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दशकरण चर्चा
यह उचित नहीं है। आप अपने इस कथन को शास्त्र के आधार से सिद्ध कर सकते हो क्या?
उत्तर :- आपका भाव/अभिप्राय सही है। हम शास्त्र के आधार से कहेंगे तो मानोगे ना? भाई! हम भी शास्त्र के विरोध में बोलने से डरते ही हैं। वास्तविकरूप से सोचा जाय तो शास्त्र का विरोध करने का अर्थ है - देव तथा गुरु का भी विरोध करना है; क्योंकि इस काल में तो शास्त्र से ही देव-गुरु का परिचय प्राप्त होता है। इसलिए सहज संयोग से कहो अथवा बुद्धिपूर्वक कहो देव-शास्त्र-गुरु ऐसा ही क्रम शास्त्र को स्वीकार है। ____कर्म, स्वभाव से अपने सामर्थ्य के अनुसार फल देने में असमर्थ है, यह विषय स्पष्ट करना है। इसलिए हमें शास्त्र में कर्म की क्षयोपशम की जो परिभाषा आयी है, उसे समझना चाहिए, जो इसप्रकार है -
वर्तमानकालीन सर्वघाति स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय, भविष्य में उदय आने योग्य, उन्हीं सर्वघाति, स्पर्धकों का सदवस्थारूप उपशम और वर्तमानकालीन देशघाति स्पर्धकों का उदय - इन तीन रूप कर्म की अवस्था को क्षयोपशम कहते हैं।"
यहाँ विचार करते हैं कि हमें आपको वर्तमान काल में कितने ज्ञान है? तो सहज ही सामान्य आगम/शास्त्र का अध्ययन करनेवाला कहेगा - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान दो ज्ञान हैं। (अभी कुमति-सुमति को गौण करके सामान्य बात करते हैं।)
फिर यह सोचेंगे कि किस कर्म की किस प्रकार की अवस्था के कारण मतिज्ञान-श्रुतज्ञान है? तो उत्तर यह रहेगा कि मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से हमें मतिज्ञान है।
१४. फिर प्रश्न हम स्वयं से ही पूछेगे - ऊपर लिखित परिभाषा के अनुसार हमें अभी मतिज्ञानावरण कर्म के सर्वघाति स्पर्धकों की दशा कैसी है? तो उत्तर रहेगा - उनका तो उदयाभावी क्षय है।
आगमाश्रित चर्चात्मक प्रश्नोत्तर (उदयकरण) अ. ३
फिर प्रश्न होगा कि यदि मतिज्ञानावरण कर्म के सर्वघाति स्पर्धकों का उदय आ जाय तो क्या होगा?
बोलिए, भाईसाहब! बोलिए ! यदि सर्वघाति स्पर्धकों का उदय आ जाय तो मतिज्ञान का पूर्ण अभाव होगा तो जीव जड़ हो जायेगा।
फिर हम सहजता से ही पूछेगे - मतिज्ञानावरण के किस स्पर्धक का उदय है? उत्तर यह होगा कि मतिज्ञानावरण के देशघाति स्पर्धकों का उदय है।
१५. प्रश्न :- मतिज्ञानावरण कर्म के सर्वघाति स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय अर्थात सर्वघाति रूप से उदय में नहीं आना, यह कार्य किस कारण से और कब से हो रहा है?
उत्तर :- अनादिकाल से कर्मों का ऐसा ही स्वभाव शास्त्र में कहा गया है।
१६. प्रश्न :- आप जैसा बता रहे हो, ऐसा अर्थ किसी विद्वान ने हमें नहीं बताया?
उत्तर :- आपको स्वयं समझने का पुरुषार्थ करना चाहिए। अन्य लोगों ने नहीं सुनाया; ऐसी शिकायत न करें। __कोई भी विद्वान अपने मति-कल्पना से शास्त्र का अर्थ कैसा और क्यों करेगा? आचार्यश्री पूज्यपाद महाराज ने सर्वार्थसिद्धि नामक शास्त्र में तत्त्वार्थसूत्र के दूसरे अध्याय के ५वें सूत्र की टीका में संस्कृत भाषा में लिखा है - सर्वघातिस्पर्धकानामुदयक्षयात्तेषामेव सदुपशमाद्देशघातिस्पर्धकानामुदये क्षायोपशमिको भावो भवति। इसका हिन्दी भाषा में अर्थ ऊपर परिभाषा में दिया है।
१७. प्रश्न :- जैसा आपने बताया वैसा क्षयोपशम कितने कर्मों में होता है?
उत्तर :- चारों घाति कर्मों में ही क्षयोपशम होता है।
१८. प्रश्न :- अभी हमें अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान नहीं है तो उनके संबंध में आवरण कर्मों का क्या स्वरूप है?
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