SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ दशकरण चर्चा आगमाश्रित चर्चात्मक प्रश्नोत्तर (उदयकरण) अ. ३ उत्तर :- अवधिज्ञानावरण और मनःपर्ययज्ञानावरण - ये दोनों कर्म २०. प्रश्न :- प्रारंभ के चार ज्ञानावरण कर्म स्वभाव से देशघाति स्वभाव से तो देशघाति ही हैं; तथापि उन देशघाति कर्मों के सर्वघाति होने पर भी इन चारों ज्ञानावरणों में सर्वघाति एवं देशघाति स्पर्धक हैं, स्पर्धकों का ही उदय होने से दोनों ज्ञानों का हमें अभाव ही है। यह विषय भी हमें ज्ञात होना चाहिए। जिनमें सर्वघाति एवं देशघाति जिन मुनिराज को मनःपर्ययज्ञान होता है; उन्हें मनःपर्ययज्ञानावरण स्पर्धक होते हैं, उनमें ही कर्म का क्षयोपशमरूप अवस्था बन सकती है का क्षयोपशम होता है। जिन मुनिराज अथवा मनुष्य या तिर्यंच को अन्य स्थान पर नहीं। किसी को मतिज्ञानावरण एवं श्रुतज्ञानावरण के अवधिज्ञान होता है, उन्हें अवधिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होता है। वर्तमानकालीन सर्वघाति स्पर्धकों का उदय ही रहेगा तो क्या होगा? जिस विषय का हमें ज्ञान नहीं, वहाँ सर्वघाति कर्म का उदय है। उत्तर :- यदि दोनों ज्ञानावरण के सर्वघाति स्पर्धकों का उदय ही १९. प्रश्न :- अवधिज्ञानावरण तथा मनःपर्यय ज्ञानावरण कर्म रहेगा तो ज्ञान का सर्वथा अभाव ही होगा अर्थात् जीव, जड़ हो जायेगा। स्वभाव से देशघाति कर्म हैं तो इनमें क्षयोपशम कैसे घटित होगा? किसी भी जीव को दोनों (मतिज्ञानावरण + श्रुतज्ञानावरण) क्योंकि क्षयोपशम की परिभाषा में सर्वघाति स्पर्धकों की भूमिका ज्ञानावरण के सर्वघाति स्पर्धकों का उदय हो, ऐसा नहीं होता। अति होती है? स्पष्ट कीजिए। अल्प मतिज्ञान, श्रुतज्ञान के धारक लब्ध अपर्याप्तक निगोदिया जीवों उत्तर :- आपको शंका होना स्वाभाविक है। इस विषम संबंधी को भी इन दोनों ज्ञानावरणों का क्षयोपशम ही रहता है। अर्थात् कर्म में जिनवाणी का कथन इस प्रकार है जितनी मात्रा में शक्ति है, उतनी मात्रा में उदय में आकर फल देने का केवलज्ञानावरण को छोड़कर चारों ज्ञानावरण कर्म देशघाति है। कार्य नहीं होता। मात्र एक केवलज्ञानावरण कर्म सर्वघाति है। चारों ज्ञानावरण कर्म २१. प्रश्न :- कर्म में जितनी घातक शक्ति है, उतनी व्यक्त नहीं देशघाति होने पर भी इन चारों ज्ञानावरण कर्म में स्पर्धक दो प्रकार के हैं होती, यह विषय घाति कर्मों में तो लागू हो सकता है; लेकिन अघाति - १. सर्वघाति स्पर्धक और देशघाति स्पर्धक । इस कारण कर्मों में कैसा होता है? मतिज्ञानावरणादि चारों आवरण कर्म स्वभाव से देशघाति होने पर भी उत्तर :- अघातिकर्मों में क्षयोपशम नहीं होता है। अघाति कर्म तो इनमें दो प्रकार के स्पर्धक (देशघाति-सर्वघाति स्पर्धक) होने से क्षयोपशम बाह्य संयोग में निमित्त हैं। उनके निमित्त के अनुसार जिन पदार्थों का घटित होता है। जैसे मतिज्ञानावरणादि चारों घाति कर्मों के संयोग-वियोग होता है, वह होता रहेगा; उससे जीव को कुछ लाभवर्तमानकालीन सर्वघाति स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय भविष्य काल में हानि नहीं है। जीव तो बाह्य सभी परद्रव्यों का एवं उनकी पर्यायों का तो उदय आने योग्य सर्वघाति स्पर्धकों का सदवस्था रूप उपशम एवं सर्वथा अकर्ता ही है अर्थात् मात्र ज्ञाता ही है। देशघाति स्पर्धकों का उदय - इन तीन रूप कर्म की अवस्था को २२. प्रश्न :- उदयकरण नही मानेंगे तो क्या आपत्तियाँ आयेगी? क्षयोपशम कहते हैं। इसप्रकार का क्षयोपशमरूप कार्य चारों ज्ञानावरण उत्तर :- १. जिनेन्द्र कथित आगम में जीव के पाँच भाव स्वतत्त्व कर्म में होता है ( अनेक प्रकार की अनुभाग शक्ति से युक्त कर्मों के कहे हैं। उनमें चौथे क्रमांक का औदयिकभाव जीव का एक स्वतत्त्व है समूह को स्पर्धक कहते हैं)। Aampradhamkomain note उसका अभाव मानना पड़ेगा। औदयिकभाव में कारण उदयकरण है। (40) imalak sD.Kailabibara
SR No.009441
Book TitleAdhyatmik Daskaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy