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विषय-अनुक्रमणिका
अ.नं.
अधिकार
विषय
१. अधिकार पहला २. अधिकार दूसरा ३. अधिकार तीसरा ४. अधिकार चौथा ५. अधिकार पाँचवा ६. अधिकार छठवाँ ७. अधिकार सातवाँ ८. अधिकार आठवाँ
___पृष्ठ प्रकाशकीय मनोगत विषय प्रवेश
४-११ बंधकरण
१२-४२ सत्त्वकरण
४३-५४ उदयकरण
५५-८९ उदीरणाकरण
९०-१०५ उत्कर्षण-अपकर्षण १०६-११५ संक्रमण करण ११६-१२१ उपशांत करण १२२-१२७ निधत्ति-निकाचित करण १२८-१३९
मनोगत मुझे विगत अनेक वर्षों से करणानुयोग सम्बन्धित “गुणस्थान" विषय के आधार से कक्षा लेने का सौभाग्य विभिन्न शिक्षण शिविरों के माध्यम से मिल रहा है। - प्रारम्भ में तो मात्र श्री कुन्दकुन्द-कहान दिगम्बर जैन तीर्थसुरक्षा ट्रस्ट, मुम्बई द्वारा जयपुर में आयोजित शिविरों में ही यह कक्षा चला करती थी। लेकिन श्रोताओं की बढ़ती हुई जिज्ञासा एवं माँग को देखते हुए अब प्रत्येक शिविर की यह एक अनिवार्य कक्षा बनी हुई है। ____ मैं प्रवचनार्थ जहाँ भी जाता हूँ, वहाँ गुणस्थान प्रकरण को समझाने का आग्रह होने लगता है। श्रोताओं की इसप्रकार की विशेष जिज्ञासा ने मुझे इस विषय की ओर अधिक अध्ययन हेतु प्रेरित किया है।
गुणस्थानों को पढ़ाते समय कर्म की बंध, सत्ता, उदय, उदीरणा आदि अवस्थाओं को समझाना प्रासंगिक होता है।
कर्म की दस अवस्थाएँ होती हैं, उन्हीं को करण कहते हैं। इन दसकरणों को समझाते समय मुझे प्रतीत हुआ कि इस संबंध में स्पष्ट और
अधिक ज्ञान मुझे करना आवश्यक है। ___ अनेक विद्वानों से चर्चा करने पर किंचित समाधान भी होता था; फिर भी कुछ अस्पष्टता बनी रहती थी। इसकारण पुनः पुनः दशकरणों को सूक्ष्मता से समझने का मैं प्रयास करता रहा। उस प्रयास की यह परिणति दशकरण की कृति है।
अभी भी मैं कुछ सूक्ष्म विषयों में निर्मलता चाहता हूँ। हो सकता है, यह कृति करणानुयोग के अभ्यासी विद्वानों के अध्ययन का विषय बनेगी तब वे मुझे समझायेंगे तो मुझे लाभ ही होगा। मुझे आशा है विद्वत् वर्ग मुझे अवश्य सहयोग देगा।
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Annanjladhyainik Dumkaran Bonk
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