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________________ एक केतली गर्म पानी] कुछ समय तक युद्धविराम की स्थिति रही; क्योंकि दोनों ही ओर यह गम्भीर मंथन चल रहा था कि स्थिति नाजुक है - इसमें क्या किया जा सकता है? शक्तिशाली महारथियों से घिरा मैं भी किंकर्तव्यविमूढ़ था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ? परिस्थिति की गम्भीरता मेरी समझ में आ रही थी, पर मैं भी ...। ___ जबतक मुझ में थोड़ी-बहुत भी समझ शेष रही, तबतक मैं किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सका; क्योंकि मैं किसी पर आक्रमण करने की स्थिति में तो था नहीं, पानी का सवाल भी समाप्त ही हो गया था। समझौता वार्ता की सम्भावना भी क्षीण ही थी; क्योंकि कोई मध्यस्थ रहा ही नहीं था। इजत के साथ आत्मसमर्पण करानेवाला कोई जयप्रकाश भी दिखाई नहीं दे रहा था। समझदारों की ओर से समझदारी की आशा करना तो रेत में से तेल निकालने जैसा था, सो मैंने सोचा - जब मरना ही है तो वीरता से ही क्यों न मरा जाय? __मेरी पकड़ में और कुछ तो था नहीं, तो मैंने आक्रोश व्यक्त करने के लिए औंधे पड़े खाली घड़े पर ही आक्रमण कर दिया और सभी महारथी एकदम मुझ पर टूट पड़े। फिर क्या हुआ? यह कहना सम्भव नहीं हैं; क्योंकि इतने में मेरी आँख खुल गई। जब मैंने घड़ी देखी तो उसमें प्रातः के चार बज रहे थे, ब्रह्ममुहूर्त था। (७) इस विचित्र स्वप्न ने मेरे मन को मथ डाला। यद्यपि मैं जाग रहा था; पर मेरी स्थिति स्वप्न जैसी ही हो रही थी; क्योंकि मैं अपने को उसके प्रभाव से मुक्त नहीं कर पा रहा था। कहते हैं कि ब्रह्ममुहूर्त में देखे स्वप्न सत्य होते हैं, पर इस स्वप्न में क्या सच्चाई हो सकती है? सोचते-सोचते मैं स्वप्न की गहराई में उतरने लगा।
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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