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एक केतली गर्म पानी
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ब्रह्ममुहूर्त की महिमा बड़े-बूढ़ों से भी सुनता आ रहा हूँ और पुस्तकों में भी पढ़ी है । कहते हैं यह दिन का सबसे बढ़िया समय होता है, जिसे हम सोतेसोते व्यर्थ ही गँवा देते हैं। यह हमारी अल्पनिद्रा का समय है । इस समय कोई भी गहरी नींद में नहीं होता । यह भी कहा जाता है कि ब्रह्ममुहूर्त में आये स्वप्न सच्चे होते हैं।
जो भी हो, पर आज मैंने इसी ब्रह्ममुहूर्त में एक स्वप्न देखा कि मेरा बचपन लौट आया है। मुझ में वही बचपना आ गया है, जो पचास वर्ष पूर्व था । यद्यपि आज मैं पचपन वर्ष का हूँ, बहुत दुनियाँ देख चुका हूँ; पर बचपन का जो दृश्य आज स्वप्न में देखा, वह बड़ा ही विचित्र है ।
मैंने देखा कि मैं अपने ग्रामीण घर में हूँ। मेरी माँ हैं, पिता हैं, भाई हैं, बहिन है और वही ग्रामीण परिवेश है, जो मेरे बचपन में था ।
अब तो ठोकरें खा-खाकर बहुत कुछ शान्त हो गया हूँ, पर बचपन में बहुत ही तेज तर्रार और क्रोधी प्रकृति का था । लोग तो आज भी कहते हैं कि मैं आज भी वैसा ही हूँ, पर अभी तो बात बचपन की चल रही है ।
मैं उस समय अपनी हठ के लिए, जिद के लिए बहुत कुछ बदनाम हो चुका था। मेरी इमेज एक जिद्दी बालक की बन चुकी थी और सारा ही परिवेश मेरे इस स्वभाव को बदलने के लिए कृतसंकल्प था । मेरी हर बात को जिद मान लिया जाता था और सभी उसके विरुद्ध मोर्चा जमा लेते थे ।
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