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[ आप कुछ भी कहो
हाय! जब वे थे, तब सद्बुद्धि न थी और अब जब सद्बुद्धि आई, तब। अस्तु, जो हुआ सो हुआ; अब पछताने से होगा भी क्या ? समय-समय पर पत्र अवश्य दे दिया करो। .
. तुम्हारी
करुणा
(२) प्रिय सखी शान्ता, ___ तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारे अनुरोध पर मैंने जो अपनी कहानी तुम्हें लिख भेजी थी, उसे तुम दुःखी बहिनों के हितार्थ प्रकाशित कराना चाहती हो; सो मेरी इच्छा तो न थी कि मैं अपनी बात दूसरों से कहूँ; पर जब तुमसे कह ही दी तो अब यदि उसे पढ़कर कुछ समझदार बहिनें समय रहते सँभल जायें, तो मैं अपने को धन्य समझूगी। ____ मैं अनुमति देती हूँ कि तुम इसे किसी भी लोकप्रिय पत्रिका में प्रकाशित करा सकती हो।
तुम्हारी वही
करुणा
धर्म का क्षेत्र ऐसा खुला है कि ... मैं एक बात पूछता हूँ कि यदि आपको पेट का ऑपरेशन कराना हो तो क्या बिना जाने चाहे जिससे करा लेंगे? डॉक्टर के बारे में पूरी-पूरी तपास करते हैं। डॉक्टर भी जिस काम में माहिर न हो, वह काम करने को सहज तैयार नहीं होता। डॉक्टर और ऑपरेशन की बात तो दूर; यदि हम कुर्ता भी सिलाना चाहते हैं तो होशियार दर्जी तलाशते हैं और दर्जी भी यदि कुर्ता सीना नहीं जानता हो तो सीने से इन्कार कर देता है; परन्तु धर्म का क्षेत्र ऐसा खुला है कि चाहे जो बिना जाने-समझे उपदेश देने को तैयार हो जाता है और उसे सुननेवाले भी मिल ही जाते हैं।
- धर्म के दशलक्षण, पृष्ठ ११४