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[ आप कुछ भी कहो
__ मैं यह नहीं मानता कि वे सब मुझे प्यार नहीं करते थे, चाहते नहीं थे; चाहते थे, पर उन्हें इस बात की बड़ी चिन्ता थी कि यदि मेरा यह स्वभाव नहीं बदला तो मेरा जीवन बर्बाद हो जायेगा। ___ अतः सबने एक ही लक्ष्य बना लिया था कि जैसे भी हो मुझे सुधारना है और सभी लोग मिल-जुलकर इस महायज्ञ में प्राणपण से जुट गये थे।
(२)
प्रात:काल का समय था। लगभग आठ-नौ बज चुके होंगे। सर्दियाँ आरम्भ हो चुकी थीं और सभी लोग गर्म-पानी से नहाने लगे थे। सभी लोग नहा चुके थे और मैं भी नहाने के लिए एक केतली गर्म-पानी चाहता था। पर किसी का ध्यान इस ओर न था। ___ मैंने दो-चार बार अपनी माँग दुहराई, पर सभी अपने-अपने काम में व्यस्त थे; क्योंकि सब काम वाले थे न? जब धीमी आवाज से काम न चला तो मेरे स्वर में तेजी आ गई और मेरी जायज माँग जिद समझ ली गई और सभी का सुधार अभियान आरम्भ हो गया। __यद्यपि यह बात सत्य हो सकती है कि मैं उस समय नासमझ था; पर उतना नहीं, जितना कि लोग समझते थे। अपनी समझ से तो मैं काफी समझदार हो गया था, पर लोग मानें तब न!
मेरी एक मजबूरी थी कि मेरी मन्द आवाज कोई सुनता न था और तेज आवाज को जिद समझ लिया जाता था। बस फिर क्या था, सभी का सुधारअभियान आरम्भ हो जाता।।
अब यह बात एक दिन की न रह गई थी। लगभग रोज ही यह सब होने लगा था। हमारे परिवार के लिए इसने एक समस्या का रूप ले लिया था। था कुछ नहीं, पर ...। .. ___ हाँ, तो मुझे नहाने के लिए मात्र एक केतली गर्म पानी चाहिए था, जो कि सबको प्राप्त हो चुका था, पर मुझे नहीं मिल पा रहा था। उपदेश, आदेश,