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[ आप कुछ भी कहो
भारत की मिट्टी में जन्मे राम जैसे भगवान ने भी क्या सीता का परित्याग मात्र इसलिए नहीं कर दिया था कि वे कुछ समय रावण के यहाँ रहीं थीं। सीताजी की अपवित्रता का उनके पास क्या प्रमाण था ? .
फिर मेरा यह पति राम तो है नहीं? यह तो क्रोध में परशुराम का भी बाप है। न मालूम अब क्या होगा?
मेरा तो जो कुछ होगा सो होगा, पर आपका क्या होगा? मुझे तो इस बात की चिन्ता है। ___ मुझे तो मुआ मारेगा, पीटेगा और क्या करेगा ? घर से तो निकालने से रहा; क्योंकि यह राम तो है नहीं। फिर राम के तो और भी बहुत-सी रानियाँ थीं, इसके तो मैं अकेली ही हूँ; मुझे छोड़कर जायेगा कहाँ ? चिन्ता तो आपकी है। यह आपको जिन्दा न छोड़ेगा। ___ मुझे तो उस दिन की याद आती है, जब एक बार ऐसा ही घट गया था। इसका सगा भाई - मेरा देवर ऐसे ही किवाड़ बन्द करके मुझसे बतिया रहा था और यह आ गया। इसके आवाज देने पर मैंने तत्काल किवाड़ खोल दिये, पर इसे इतना गुस्सा आया कि उसे जान से ही मार डाला। मैंने बहुत हाथपैर जोड़े, पर इसने एक न सुनी; मैं बहुत गिड़गिड़ाई, उसके प्राणों की भीख माँगी; पर यह दुष्ट सगे भाई पर भी न पसीजा। आखिर उसकी लाश को मुझे ही इसी आँगन में गाड़ देना पड़ा। मेरी भी इसने कम पिटाई न की थी। महीनों बिस्तर पर पड़ी रही थी। कुछ नसें तो आज भी दुखती हैं।"
वह ज्यों-ज्यों उस दिन का भयानक चित्रण करती, त्यों-त्यों पंडितराज के होश-हवास गायब होने लगे। वे पसीने से तर-बतर हो गये। उनसे कुछ कहते ही न बना। जबान तालू से चिपक कर रह गई। उधर बाहर से पुरुष की आवाज़ और किवाड़ों की खटखटाहट प्रतिक्षण तेज होती जा रही थी।
पण्डितराज को भयाक्रान्त देख वह बोली -