________________
तिरिया-चरित्तर ]
७१
__"शास्त्रों में तो बहुत-कुछ कहा है, पर महाराज आत्मा है कैसा? आपने तो देखा होगा न ?" ___ "हाँ, हाँ; क्यों नहीं? सब-कुछ देखा है शास्त्रों में। क्या नहीं देखा बेटी? यह सारी उमर शास्त्रों को देखते-देखते ही तो बीती है।"
(५)
पण्डितराज का यह व्याख्यान न मालूम कब तक चलता रहता, यदि बाहर से किवाड़ों की खटखटाहट तेज न हो जाती ।
किवाड़ों की तेज खटखटाहट सुनकर वे दोनों एकदम चौंक पड़े। बाहर से आती हुई आवाज सुनकर घबड़ाती हुई गृह-मालकिन बोली -
"महाराज ! अनर्थ हो गया।" निश्चिन्त पण्डितराज बोले - "क्यों क्या हुआ ? कौन खटखटा रहा है ये किवाड़।"
"मेरा क्रोधी पति और कौन खटखटायेगा। महाराज? बहुत क्रोधी है ; बड़ा अनर्थ हो गया समझो। मैंने तो वैसे ही किवाड़ लगा दिये थे कि कहीं कुत्ताबिल्ली न आ जाये। लगता है उसने हमारी बातें सुन ली हैं, उसे शक हो गया
"किस बात का ? अपन ने ऐसी क्या बात की है, जो उसे नहीं सुननी चाहिए थी ?"
घबराहट में थरथर काँपती हुई वह बोली - "महाराज, आप त्रियाचरित्र के तो विशेषज्ञ हैं, परन्तु पुरुषों के स्वभाव से अपरिचित जान पड़ते हैं। क्या किसी पुरुष के लिए किवाड़ बन्द करके किसी परपुरुष के साथ उसकी पत्नी की उपस्थिति मात्र उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त नहीं है?
मैं और आप दोनों अकेले घर में हैं और किवाड़ बन्द हैं; क्या कोई भारतीय पति इतनी बात बरदाश्त कर सकता है ?