SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिरिया चरित्तर ] "जल्दी करो महाराज ! आप इस सन्दूक में बैठ जाओ। इसके अतिरिक्त बचने का कोई दूसरा उपाय नहीं है ।" "क्या कहा, सन्दूक में?" "हाँ, हाँ ! सन्दूक में । एक-आध घंटा ही बैठना होगा । खाना खा-पीकर चला जावेगा वह खेत पर, तब आपको निकाल लूँगी । " किंकर्त्तव्यविमूढ़ पण्डितराज कुछ सोचते, इसके पहिले ही उसने उनका हाथ पकड़ कर सन्दूक में बिठा दिया और बोली " देखी आपने पुरुषों की पशुता ! स्वयं चाहे हजारों औरतों से सबप्रकार के सम्बन्ध रखें, परन्तु स्त्री को किसी से बात करते देख लिया तो हो गये पागल । यह नहीं सोचते कि नारियाँ भी तो पुरुषों के समान ही हाड़मांसवाली प्राणी हैं । " ७३ - कहते हुए उसने सन्दूक बन्द कर दी, फिर उस पर ताला लगाकर चाबी अपनी कमर में लटका ली और मस्त चाल से चलती हुई जाकर किवाड़ खोल दिये । जब नाराज होते हुए पति ने उससे पूछा कि किवाड़ खोलने में इतनी देर क्यों लगाई, तो मुस्कुराती हुई बोली - "एक आदमी था; जब उसे छिपा पाया, तभी तो किवाड़ खोलती ; जल्दी कैसे खोल देती ?" उसके उत्तर को मजाक समझते हुए उत्तेजित हो जब उसने यह कहा "मजाक करती है, सच क्यों नहीं बताती ?" I तब वह गम्भीर होती हुई बोली - "तुम्हें तो सब मजाक ही लगता है मैं तुमसे क्यों मजाक करने लगी, सच कहती हूँ कि जब आदमी को छिपा पाया, तभी किवाड़ खोले हैं। यदि तुम्हें मेरी बात पर विश्वास न हो तो देख लो उस सन्दूक में बन्द है । " - - यह कहते हुए उसने कमर में से चाबी का गुच्छा निकालकर उसके सामने फेंक दिया।
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy