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________________ तिरिया-चरित्तर (१) जिसप्रकार आदमी का चेहरा उसके अन्तर का दर्पण होता है; उसीप्रकार गाँव के पनघट को भी गाँव के अन्तर का दर्पण कहा जा सकता है। जिसप्रकार हस्तरेखा विशेषज्ञ हाथ की रेखाएँ देखकर आदमी का स्वभाव एवं प्रवृत्तियाँ पहिचान लेता है; उसीप्रकार पनघट पर होनेवाले संवादों से गाँव के चरित्र को पहिचाना जा सकता है। पनघट को नारियों की चौपाल ही समझिये। __ रस्सियों की अनवरत रगड़ से पनघट पर पड़े निशानों पर जिस गति से रस्सियाँ सरसराती हुई सरकती हैं, पनिहारिनों की जबान भी उससे कम नहीं सरकती। संवादों के ग्रहण एवं प्रसारण में जो चतुराई पनघट पर देखी जा सकती है; वह बात संवाद-एजेन्सियों में कहाँ? क्योंकि मानवस्वभाव की जैसी गहरी पकड़ उन अनपढ़ पनिहारिनों में पाई जाती है; वैसी पकड़ विश्वविद्यालयीन कारखानों में ढले डिग्रीधारी पत्रकारों में प्राप्त होना असम्भव नहीं तो दुर्लभ तो है ही। एक तो पनघट अपने आप में अद्भुत स्थल होता ही है, यदि वह पगडंडी के किनारे हो तो फिर क्या कहना ? पनघटों पर होनेवाली चर्चा के रसिक राहगीर जब पानी पीने के बहाने पनघट पर रुक-रुक कर बिन प्यास के ही पानी पीने की आतुरता व्यक्त करते हैं, पनिहारिनों से पानी पिलाने का अनुरोध करते हैं तो पनिहारिनों को उनकी प्यास का राज समझते देर नहीं लगती है। वे उनकी रसिकता का रस लेती हुईं उन्हें अपने भोले बाग्जाल में ऐसा उलझाती हैं कि उनका सुलझना कठिन हो जाता है। .
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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