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तिरिया-चरित्तर 1
ऐसे ही पनघट की एक पनिहारिन ने जब दूर आता हुआ एक ऊँटों का काफिला देखा तो चकित हुए बिना न रही; क्योंकि ऊँटों पर पोथियाँ ही पोथियाँ लदीं थीं। सबसे आगे एक ऊँट पर एक त्रिपुण्डधारी ब्रह्मज्ञानी पण्डितराज विराजमान थे, पीछे पोथियों से लदा ऊँटों का लम्बा काफिला था । ऊँटों के रसिया सईस जब पानी पीने के बहाने पनघट पर रुके एवं पनिहारिन से पानी पिलाने का आग्रह करने लगे, तब पनिहारिन भी अपनी उत्सुकता नहीं दबा सकी। उन्हें पानी पिताते हुए उसने पूछा
"ये तिलकधारी सौदागर कहाँ के हैं और इन ऊँटों पर क्या माल लदा है ?"
उसकी अज्ञानता पर हँसते हुए एक बोला
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"ये महाराज तुम्हें सौदागर से लगते हैं? ये सौदागर नहीं, ब्रह्मज्ञानी पण्डितराज हैं ... पण्डितराज । "
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पनिहारिन ने बड़ी उपेक्षा से कहा -
" होंगे, पर इन ऊँटों पर लदा माल क्या है ? हमें तो माल से मतलब ।" " इसे तुम माल कहती हो ? यह माल नहीं, शास्तर हैं शास्तर; पण्डितराज के लिखे हुए शास्तर हैं ।"
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