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[ आप कुछ भी कहो
चेतनलाल को उनकी बातें यद्यपि बहुत अच्छी लग रही थीं, फिर भी उसे कुछ अटपटा अवश्य लग रहा था। उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि बाजार में तो लोग इसकी बहुत कम कीमत लगा रहे थे और ये अपार सम्पत्ति के मालिक सबसे बड़े जौहरी इसे इतना कीमती बता रहे हैं, आखिर माजरा क्या है? ___ 'कहीं सेठजी मेरा मजाक तो नहीं उड़ा रहे हैं' - यह विचार आते ही सेठजी की गम्भीरता देखकर इस बात पर विश्वास करने को भी उसका मन तैयार नहीं हुआ।
जब उसकी समझ में कुछ नहीं आया तो हिम्मत करके बोला - "मेरे लिए क्या आदेश है?"
"आदेश, आदेश तो क्या दूँ; पर यदि तुम चाहों तो एक सलाह अवश्य दे सकता हूँ।"
"फरमाइये"
"अभी सीजन ऑफ है, इसकी सही कीमत अभी मिलना सम्भव नहीं है। यदि सही कीमत चाहते हो तो कुछ दिन प्रतीक्षा करनी होगी। बरसात निकल जाने के बाद बाहर से व्यापारियों का आवागमन हो जावेगा, तब इसकी सही कीमत मिल सकेगी।"
"तबतक रुकना तो सम्भव नहीं है।" "क्यों?" "क्योंकि, अब आपसे क्या छिपावें; हमारे पास ।" वह अपनी बात पूरी ही न कर पाया था कि सेठजी बोल पड़े - "बेटा, इसकी चिन्ता मत करो। हम सब व्यवस्था करेंगे।" "नहीं, यह नहीं हो सकता।" "क्यों नहीं हो सकता?"