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गाँठ खोल देखी नहीं ]
"हम जानते हैं, तुम जवाहरलाल जवेरी के बेटे हो, किसी का अहसान नहीं ले सकते । यही न?"
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"
"नहीं,
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'नहीं, नहीं; मैं सब जानता हूँ। अरे भाई ! छह माह को तुम हमें ही अपना
पिता समझ लो । "
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'आप कैसी बातें करते हैं ?"
"ठीक कहता हूँ बेटा, जवाहरलाल जैसा मेरा भाग्य कहाँ ? "
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'आप जैसा भाग्यवान
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"जाने दो; लाल बिकने पर वह सब चुका देना, जो तुम तबतक के लिए हम से लो । पिता का मित्र होने से इतना अधिकार तो हमारा है ही । "
कहकर सेठजी ने उस लाल को एक तिजोरी में रखकर उसका ताला अच्छी तरह लगाकर चाबी चेतनलाल को दे दी और कहा
"
'इस चाबी को आज ही रजिस्ट्री से अपनी माँ के पास भेज दो। एक स्लिप पर हस्ताक्षर कर इस तिजोरी को सील कर दो।"
उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार से अभिभूत होकर चेतनलाल कुछ भी न बोल सका और सम्मोहित व्यक्ति की भाँति उनका आदेश पालन करता गया ।
सेठजी ने उसके रहने, खाने-पीने आदि की समुचित व्यवस्था करने के बाद पेढ़ी के सभी कर्मचारियों को आदेश दिये कि कोई भी माल खरीदा या बेचा जाये, चेतनलाल को दिखाये बिना नहीं खरीदा - बेचा जाना चाहिए।
(७)
समय जाते क्या देर लगती है ? बातों ही बातों में छह माह बीत गये । चेतनलाल की आँखों के सामने से लाखों लाल निकल चुके थे। अब वह एक बहुत अच्छा जौहरी बन गया था।
सीजन चालू हुआ। बाहर के व्यापारियों का आवागमन भी चालू हो गया। बाजार अपनी पूरी तेजी पर था। चेतनलाल ने अवसर देखकर सेठ साहब से कहा
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