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[ आप कुछ भी कहो
सुख-दुःख सहने की जितनी सामर्थ्य नारियों में होती है, उतनी पुरुषों में कहा? जिस आर्थिक उतार-चढ़ाव को सेठ जवाहरलाल नहीं झेल सके और महाप्रयाण कर गये, सेठानी उसके साथ पति के वियोग को भी झेल गईं। पुत्र के संरक्षण का जो महान उत्तरदायित्व सेठजी मरते-मरते उन्हें सौंप गये थे, उसे निभाने में वे तन-मन से जुट गईं। धन तो उनके पास था ही कहाँ? सेठजी ने जो कुछ कमाया था, वे उसे गँवाकर ही गये थे। जो कुछ बचा था, उससे लाल खरीद कर पुत्र को सौंपने का आदेश भी दे गये थे।
पुत्र की सुरक्षा के साथ-साथ उसकी सुरक्षा का भार भी सेठानी के माथे था। ___ जो कुछ भी स्थिति थी, सेठानी ने उसे भवितव्य जानकर सहज ही स्वीकार कर ली थी। बिना डींग हाँके दुर्भाग्य से लड़ने की जितनी क्षमता नारियों में सहज देखी जा सकती है। पुरुषों में उसके दर्शन असम्भव नहीं, तो दुर्लभ तो है हीं। __नौकरों-चाकरों से घिरी रहने और जमीन पर भी पैर न रखने वाली सेठानी सिलाई-कढ़ाई करती, बड़ी-पापड़ वेलती; पर किसी के सामने हाथ न फैलाती। पुत्र के लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा में उसने कोई कमी न रखी। स्वयं रूखा-सूखा खाती, पर पुत्र को कभी कोई कमी महसूस न होने देती।
(३) - समय बीतते क्या देर लगती है? पुत्र जव कुछ समझदार हुआ तो एक दिन अपनी माँ से बोला -
"माँ ! अब मैं पढ़ना नहीं चाहता, कहीं नौकरी करूँगा।" मुँह पर उँगली रखते हुए माँ बोली - "बेटा, ऐसा नहीं बोलते । जौहरी का बेटा नौकरी नहीं करता। तुम अभी पूरे पढ़ भी कहाँ पाये हो? अभी तो तुमने दसवीं कक्षा ही पास की है। तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो, फिर"।".