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गाँठ खोल देखी नहीं ]
"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। जब जौहरी की पत्नी मेहनत मजदूरी कर सकती है तो फिर जौहरी का बेटा नौकरी क्यों नहीं कर सकता? नौकरी नहीं करूँगा तो क्या करूँगा? मुझसे आपकी यह हालत देखी नहीं जाती।" "बेटा ! नौकरी नहीं, तुम व्यापार करना । "
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'व्यापार ! माँ, व्यापार बिना पूँजी के नहीं होता । " "बेटा! पूँजी की क्या कमी है अपने यहाँ ?"
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कहकर माँ भीतर चली गई। माँ की बात सुनकर वह अचम्भे में पड़ गया। उसकी समझ में कुछ नहीं आया कि माँ क्या कह रही है?
हाथ में एक गन्दी-सी पोटली लिए कुछ देर बाद वह बाहर आई और उसके सामने ही बिना कुछ कहे उसे पोटली को खोलने लगी । प्याज के छिलकों की भाँति कई पर्त उतरने के बाद उसमें से एक चमकदार लाल निकला। उसे को थमा पुत्र बोली हुए
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“बेटा ! यह बहुत ही बेशकीमती लाल है। तुम्हारे साथ तुम्हारे पिताजी मुझे यह भी सौंप गये थे । यह भी कह गये थे कि जब मेरा लाल समझदार हो जाये तो उसे यह सौंप देना । इससे प्राप्त पूँजी से वह अच्छी तरह व्यापार कर सकेगा
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मैं आज तुम्हें यह सौंपकर निश्चिन्त होती हूँ, उनके ऋण से उऋण होती हूँ । तुम इसे बेचकर अपनी पूँजी बनाओ और जमकर व्यापार करो, पिता जैसी ही कीर्ति कमाओ, फूलो- फलो !"