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गाँठ खोल देखी नहीं
(१) "देखो, मैं तुम्हें दो लाल सौंपे जा रहा हूँ। इन्हें सँभाल के रखना।"
- यह कहते हुए जयपुर के प्रसिद्ध जौहरी सेठ जवाहरलाल ने अपनी पत्नी की हथेली पर जब एक लाल रखा, तब वह आश्चर्यचकित होती हुई बोली -
"दो; दो कहाँ हैं ? यह तो एक ही है। आपकी तबियत तो ठीक है न?"
"तबियत, तुम तबियत की बात करती हो! तबियत तो अब क्या ठीक होगी? अब तो भगवान जितना जल्दी उठा ले, उतना ही अच्छा है।"
"आप कैसी बातें करते हैं? सब-कुछ ठीक हो जायेगा। आप जल्दी ही अच्छे हो जाओगे। डॉक्टर साहब कह रहे थे।"
"छोड़ों तुम इन डाक्टरों की बातों को। वे तो तबतक यही कहते रहेंगे, जबतक मरघट पर ही न पहुँच जावें।"
"लगता है आप बहुत निराश हो गये हैं । व्यर्थ की चिन्ता में अपनी यह हालत कर ली आपने।"
"मुझे अपनी नहीं; तुम्हारी चिन्ता है, अपने इस लाल की चिन्ता है।"
"क्या चिन्ता करना इन लालों की? ये तो आपने हजारों कमाये हैं और हजारों ही गवाये हैं। ये तो हाथ के मैल हैं। जब तबियत ठीक हो जावेगी, फिर हजारों कमा लोगे। आप जैसी निगाहवाला, आप जैसा पारखी - अनुभवी है कोई जयपुर में ?"