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[ आप कुछ भी कहो
और सब लोग आश्चर्यचकित आँखें फाड़-फाड़कर उसे देख रहे थे।
अब तीन कड़े हो गये थे। सबकी समझ में सब-कुछ आ गया था। सभी चुप थे; किसी के पास कहने के लिए कुछ था ही नहीं, जो बोलते। सभी ओर सन्नाटा था, सेठजी भी माथे पर हाथ रखे नीची गर्दन किए बैठे थे।
आकाश निर्मल था और बूंदा-बाँदी थम गई थी। आकाशी बादलों के समान संशय के बादल भी छट चुके थे और गाँव का आकाश भी निर्मल हो गया था, पर लोगों की आँखों से होनेवाली अविरल अश्रुधाराएँ थम ही न रहीं थीं। बातों ही बातों में सारे गाँव में खबर फैल गई थी और झुण्ड के झुण्ड लोग आ रहे थे एवं वहाँ इकट्ठे होते जा रहे थे।
(१२) जब सेठ धनपतराय को कुछ ध्यान आया तो वे तीनों कड़े लेकर धीरेधीरे पण्डितजी के घर की ओर चल दिये। उनके पीछे-पीछे उनके परिजन एवं पुरजन भी थे। एक शान्त मौन जुलूस-सा ही बन गया था। __वे सभी पण्डितजी के घर पहुँचे और उनके सामने तीनों कड़े रख दिये, तो उनकी समझ में सब-कुछ आ गया। वे बड़ी देर तक एक-दूसरे को देखते रहे, कोई कुछ बोला नहीं। मुँह से तो कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था; पर स्निग्ध शान्त मौन वह सब-कुछ कह रहा था, जो वाणी के द्वारा कभी नहीं कहा जा सकता। पण्डितजी तेजी से उठे, अन्दर गये, क्षणभर में ही वापिस आये और चौथा कड़ा लाकर उन तीनों में मिलाकर रख दिया। ___ पण्डितजी की अमृतवाणी से उपदेश तो लोगों ने जीवन भर सुने थे, पर उनका कितना प्रभाव उन पर पड़ा था - यह तो वे ती जानते थे; किन्तु इस घटना ने सबको अन्दर से हिला दिया था। नीरव गौन को भंग करते हुए अश्रुपूरित नेत्रों से जब सेठजी ने कहा -
"यह आपने क्या किया?" तो एकदम शान्त गम्भीर स्वर में पण्डितजी कहने लगे -
"जो मुझे उचित प्रतीत हुआ। इस विषम स्थिति से उबरने का मुझे एक यही निरापद मार्ग सूझा था। यद्यपि मैं जानता हूँ कि इससे आपको भी कम