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परिवर्तन 1
झुण्ड के
के झुण्ड लोग उनके पास आते, समझाते, मनाते; डराते - धमकाते भी; पर उन पर कोई असर न होता; क्योंकि वे इस पथ पर बिना सोचे-समझे थोड़े ही चल पड़े थे, वर्षों के सोच-विचार के बाद समझ-बूझ कर ही उन्होंने यह अडिग कदम उठाया था । रही बात धमकियों की, सो धमकियाँ तो महापुरुषों के निश्चय को और भी अधिक दृढ़ कर देती हैं। वे तो हथेली पर जान रखकर निकले थे, उन्हें कौन विचलित कर सकता था?
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(३)
शक्तिसम्पन्न एवं प्रतिष्ठित व्यक्तियों का एक ग्रुप उनके पास पहुँचा । उसमें वे सभी प्रकार के व्यक्ति थे, जो उन्हें किसी भी रूप से प्रभावित कर सकते थे, विचलित कर सकते थे । यदि मनाने वाले थे, तो डराने वाले भी थे; विनम्र थे, तो अक्खड़ भी थे; नर्म-गर्म सभी थे ।
उनमें से एक बोला - "यह आपने ठीक नहीं किया, इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा । "
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शान्तभाव से स्वामीजी ने उत्तर दिया " ठीक क्या है और क्या नहीं यह हम अच्छी तरह से जानते हैं । रही बात परिणाम की, सो परिणाम से भी हम अपरिचित नहीं हैं । जिस परिणाम की तुम बात कर रहे हो, उसकी तो हमने कभी चिन्ता ही नहीं की; पर हम जो कर रहे हैं, उसके परिणाम में तो अनन्त संसार का अभाव ही होने वाला है । हमारा यह भव भव का अभाव करने के लिए है, किसी पक्ष या सम्प्रदाय के पोषण के लिए नहीं । "
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व्यंग्य करता हुआ दूसरा बोला
'भव का अभाव तो होगा ही; क्योंकि यह भव (शरीर) बिना रोटियों के तो चलने वाला है नहीं । "
"हमने घर रोटियों के लिए नहीं छोड़ा था । कम से कम आप लोगों को तो यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि हमारे घर रोटियों की कोई कमी नहीं थी। रोटियों की चिन्ता करने वाले घर नहीं छोड़ा करते । तुम रोटियों की बात करते हो; जो चिन्तामणि मुझे प्राप्त हुआ है, उसके लिए मैं