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अभागा भरत ]
"सम्राट के इस विश्वास को यह अनुचर अपनी अनुपम निधि समझता है, पर पर्यायों के क्रमनियत परिणमन को कौन टाल सकता है ? सम्राट को इस महा सत्य पर भी विचार करना चाहिए। अपने नियतक्रम में घटनेवाली घटनाओं को साक्षीभाव से स्वीकार करना ही दृष्टिवन्त का कर्त्तव्य है ।"
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'श्रद्धास्पद सत्य को स्वीकार करने के लिए राग बाध्य नहीं होता - इस पर्यायगत सत्य को भी तो टाला नहीं जा सकता । निरन्तर प्राप्त होनेवाली भाग्योदय की बधाइयाँ स्वीकार करते-करते अब यह अभागा भरत ऊब गया है । "
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" रुचि की प्रतिकूलता में सद्भाग्य भी दुर्भाग्यवत् फलते हैं । जिस चक्ररत्न की प्राप्ति को जगत बड़ा भारी भाग्योदय समझता है, जिनध्वनि श्रवण में अन्तरायस्वरूप होने से उसी की उपलब्धि ने आज राजाधिराज को आन्दोलित कर दिया है - यह बात मैं अच्छी तरह जानता हूँ; पर सागर को अपनी गम्भीरता को पहिचानना होगा। इससे अधिक कुछ कहना अनुचर उचित नहीं समझता है, क्योंकि वह अपनी सीमाओं से अपरिचित नहीं है । "
" महामात्य की समयोचित सलाह के लिए भरत आभारी है । "
(२)
दिग्विजय के लिए प्रस्थान के अवसर पर मंगल-तिलकोपरांत जब भरतराजमाता यशस्वती नन्दा के चरणों की वन्दना कर रहे थे; तब उनकी आँखों से प्रवाहित अश्रुधारा ने राजमाता के चरण पखार दिये ।
मंगल प्रस्थान के अवसर पर प्रवाहित अश्रुधारा में राजमाता को ससम्मान दिग्विजय में कुछ अमंगल प्रतीत हुआ ।
अपने को सँभालते हुए वे गरजकर बोलीं
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'भरत क्षेत्र के भावी भाग्यविधाता, आद्य चक्रवर्ती सम्राट, नन्दा के दुग्ध पुष्ट, भाग्यशाली ऋषभपुत्र की इस कातरता का कारण राजमाता जानना चाहती हैं; क्योंकि उन्हें यह इष्ट प्रतीत नहीं होती।"
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