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[ आप कुछ भी कहो
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"भरत को और चाहे जो कुछ कहें, पर भाग्यशाली नहीं। आज इस अभागे भरत को अपने सौ भाइयों एवं उन नागरिकों के भाग्य से ईर्ष्या हो रही है; जिन्हें आज से ही प्रतिदिन दिन में तीन-तीन बार छह-छह घड़ी भगवान ऋषभदेव की दिव्यध्वनि सुनने का अवसर प्राप्त होगा और उसी समय तुम्हारा यह अभागा भरत साम-दाम-दण्ड-भेद की राजनीति में उलझा होगा, युद्ध का संचालन कर रहा होगा।"
भरत के अन्तर्द्वन्द्व ने राजमाता को आन्दोलित कर दिया। वे एकदम गम्भीर हो गईं, पर कुछ बोली नहीं। उनके गम्भीर मौन ने जो कुछ कहा, उसके उत्तर में भरत कहने लगे - __ "हो सकता है यशस्वती राजमाता के गौरव को मेरा यह स्पष्टीकरण स्वीकृत न हो, पर भरत की वात्सल्यमयी माँ को तो ...''
भरत अपनी बात पूरी भी न कर पाये थे कि राजमाता का शौर्य भी विगलित हो उठा और वे बोली - __ "बेटा, मैं तेरी वेदना जानती हूँ, पर भरत का भारत अखण्ड होना चाहिए, छह खण्डों में विभाजित नहीं।"