SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभागा भरत (१) भरताधिपति सम्राट भरत के दरबार में जब एक के बाद एक तीन शुभ समाचार आये तो सम्पूर्ण दरबार आनन्दातिरेक से झूम उठा, आनन्द-सागर में डूब गया; पर सम्राट भरत जल से भिन्न कमलवत् अलिप्त ही बने रहे। ___ यह बात नहीं है कि आदितीर्थंकर ऋषभदेव को सर्वज्ञता की प्राप्ति के शुभ समाचार ने उन्हें प्रफुल्लित नहीं किया था; किया था, अवश्य किया था; इससे तो वे रोमांचित हो उठे थे। __ हाँ, यह बात अवश्य है कि पुत्ररत्न की प्राप्ति के समाचार को कुछ भी प्रतिक्रिया उनके वदनाम्बुज पर लक्षित नहीं की जा सकी थी; किन्तु जब चक्ररत्न की प्राप्ति का समाचार मिला, तब तो वे एकदम गम्भीर हो उठे, उनका आनन्दातिरेक कपूर की भाँति काफूर हो गया। मुखमण्डल पर प्रतिबिम्बित भरत के अन्तरंग से अपरिचित सम्पूर्ण दरबार यद्यपि आनन्दमग्न था, तथापि तीव्रतम निरीक्षण शक्ति से सम्पन्न महामात्य से कुछ भी छिपा न रह सका। जगत में ऐसा कौनसा प्रमेय है, जो सतर्क प्रज्ञा को अगम्य हो। दरबार की समाप्ति पर एकान्त पाकर महामात्य ने कहा - "आह्लाद के अवसर पर सम्राट की गम्भीरता का रहस्य क्या यह क्षुद्र सेवक भी जान सकता है ?" "क्या महामात्य को भी हृदय का रहस्य वाणी से बताना होगा ?"
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy