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________________ जागृत विवेक ] की जा सके। विनय के बिना तो विद्या प्राप्त होती ही नहीं है; पर विवेक और प्रतिभा भी अनिवार्य है, इनके बिना भी विद्यार्जन असम्भव है। गुरु के प्रति अडिग आस्था का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है, पर वह आतंक की सीमा तक न पहुँचना चाहिए; अन्यथा वह विवेक को कुण्ठित कर देगी। २५ समागत समस्याओं का समुचित समाधान तो स्व-विवेक से ही सम्भव है; क्योंकि गुरु की उपलब्धि तो सदा सर्वत्र सम्भव नहीं। परम्पराएँ भी हर समस्या का समाधान प्रस्तुत नहीं कर सकतीं; क्योंकि एक तो समस्याओं के अनुरूप परम्पराओं की उपलब्धि सदा सम्भव नहीं रहती; दूसरे, पस्थितियाँ भी तो बदलती रहती हैं। यद्यपि विवेक का स्थान सर्वोपरि है; किन्तु वह विनय और मर्यादा को भंग करने वाला नहीं होना चाहिए। विवेक के नाम पर कुछ भी कर डालना तो महापाप है; क्योंकि निरंकुश विवेक पूर्वजों से प्राप्त श्रुतपरम्परा के लिए घातक सिद्ध हो सकता है । क्षेत्र और काल के प्रभाव से समागत विकृतियों का निराकरण करना जागृत विवेक का ही काम है, पर इसमें सर्वाङ्ग सावधानी अनिवार्य है । हमारी प्रसन्नता का कारण यह है कि तुमने स्वविवेक से मंत्रों में सुधार तो किया, पर विनय और मर्यादा को भंग नहीं किया। मंत्रों के सुधारने के पहले बहुत कुछ सोचा, पर मेरे प्रभाव से आतंकित न हुये और सुधार सत्य सिद्ध हो जाने पर भी अहंकार में नहीं चढ़े। सदाचारी, सन्तुलित - विवेक और विनयशील मर्यादाओं से समृद्ध ऐसे शिष्यों की ही कामना मुझे थी । अब मैं तुम्हें गुरुपरम्परा से प्राप्त सम्पूर्ण श्रुत ही नहीं, आचार्यपद भी यथासमय समर्पित कर निश्चिन्त हो जाने के लिए कृतसंकल्प हूँ ।"
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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