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[ आप कुछ भी कहो
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दोनों युवाऋषि आचार्य श्री के चरणों में उपस्थित हुए। नमन करते हुए युवा ऋषियों को मंगल आशीर्वाद देते हुए आचार्य श्री बोले
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'पुष्पों के समान दन्तपंक्ति के धनी पुष्पदन्त और अभूतपूर्व बल के धनी भूतबली को पाकर आचार्य धरसेन कृतकृत्य है । "
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अपने नये नाम सुनकर युवा ऋषि चकराये पर देह में समागत परिवर्तन को लक्ष्य कर सब-कुछ समझ गये । अत्यन्त विनम्र पुष्पदन्त और भूतबली आचार्यश्री से.मंत्रों के शुद्ध कर लेने के अपराध के लिए क्षमायाचना के साथ जो कुछ घटा था, उसे सुनाने लगे तो गुरुगम्भीर गिरा से आचार्य श्री कहने लगे
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"यह सब सुनाने की आवश्यकता नहीं है, हमारे लिए कुछ भी अगम्य नहीं है। हमें ऐसे ही विनयशील, विवेक के धनी और प्रतिभाशाली अन्तेवासियों की आवश्यकता थी; जिन्हें पूर्वजों से प्राप्त श्रुतसम्पत्ति समर्पित