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________________ आप कुछ भी कहो ] जनता की मूक याचना से द्रवित हो ऋषिराज की दिव्य-देशना प्रवाहित होने लगी। ऋषिराज कह रहे थे - "सभी आत्मा स्वयं परमात्मा हैं, परमात्मा कोई अलग नहीं होते। स्वभाव से तो सभी आत्मायें स्वयं परमात्मा ही हैं, पर अपने परमात्मस्वभाव को भूल जाने के कारण दीन-हीन बन रहे हैं। जो अपने को जानते हैं, पहिचानते हैं और अपने में ही जम जाते हैं, रम जाते हैं, समा जाते हैं; वे पर्याय में भी परमात्मा बन जाते हैं। जब सभी परमात्मा हैं तो फिर कौन छोटा, कौन बड़ा ? सभी समान ही हैं । अपने भले-बुरे का उत्तरदायित्व प्रत्येक आत्मा का स्वयं का है । कोई किसी का भला-बुरा नहीं कर सकता, पर के भला-बुरा करने का भाव करके यह आत्मा स्वयं ही पुण्य-पाप के चक्कर में उलझ जाता है, बँध जाता है। पुण्य और पाप दोनों ही बन्धन के कारण हैं। पाप यदि लोहे की बेड़ी है तो पुण्य सोने की। बेड़ियाँ दोनों ही हैं, बेड़ियाँ बन्धन ही हैं।
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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