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मुझे आप से कुछ कहना है ]
"सड़कों पर, गलियों में घूमते दर-दर की ठोकर खाते चेतन लालों की कीमत आज किसको है? आज तो सभी जड़ रत्नों के पीछे भाग रहे हैं।आज कौन-सा घर इन चेतन लालों से खाली है? कमी लालों की नहीं; उन्हें पहिचाननेवालों की है, सँभालनेवालों की है। दूसरों की बात जाने दीजिए; हम स्वयं लाल हैं, पर अपने को पहिचान नहीं पा रहे हैं।"
कहानी की विषयवस्तु चाहे कुछ भी हो, मेरी रुचि का विषय और जीवन का अभिन्न अंग होने से अध्यात्म तो तिल में तेल की भाँति इन सभी कहानियों में सर्वत्र अनुस्यूत है ही। यह भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कथानक तो मात्र बहाना है, मूल प्रतिपाद्य तो अध्यात्म ही है। ___ यद्यपि सामान्यरूप से इन सभी कहानियों में विभिन्न पहलुओं से जिनअध्यात्म के आन्तरिक मर्म को ही स्पष्ट किया गया है; तथापि प्रत्येक कहानी के माध्यम से कुछ विशेष कहने का भी प्रयास किया गया है। ___ यह तो सर्वविदित ही है कि जैनदर्शन अकर्त्तावादी दर्शन है। अत: जैन कथा-साहित्य भी अकर्तृत्व का पोषक होना चाहिए। मूलत: वह ऐसा है भी; किन्तु सहज लोकप्रवाह में बहकर उसमें जो कर्तृत्वपोषक पुट आ गया है, निरन्तर बढ़ रहा है ; जैसे भी बने उस प्रवाह को रोककर उसे उसकी मूल धारा में सहज प्रवाहित करने का ही यह एक लघु प्रयास है।
अत: मनीषियों से मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन की अपेक्षा स्वाभाविक ही है। सहज सहयोग करना, सहज प्रोत्साहन देना, मार्गदर्शन करना; सज्जनों की स्वभावगत विशेषता होने से उनसे कुछ विशेष कहने की आवश्यकता नहीं, तदर्थ विनम्र अनुरोध ही पर्याप्त है। ___ यदि दृष्टि विशाल हो तो पाठकीय प्रतिक्रियाओं से भी सहज मार्गदर्शन प्राप्त होता ही है, इसके लिए तो किसी से कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं है।
इन दश कहानियों में से नौ कहानियाँ तो सन् १९८३ की ही रचनाएँ हैं, मात्र एक कहानी 'असन्तोष की जड़' इक्कीस-बाईस वर्ष पुरानी रचना है। ये सभी कहानियाँ जैनपथ प्रदर्शक (पाक्षिक) में प्रकाशित हो चुकी हैं।