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[ आप कुछ भी कहो
उपाधि रही होगी और नन्दा नाम। जो भी हो, पर मैंने इन कहानियों में उक्त दोनों नामों का प्रयोग विशेषण-विशेष्य के रूप में 'यशस्वती नन्दा' किया है। ___ इसीप्रकार की स्थिति तीर्थंकर भगवान महावीर की माँ के सम्बन्ध में भी पाई जाती है। प्रियकारिणी और त्रिशला - उनके भी ये दो नाम प्राप्त होते हैं। 'तीर्थंकर भगवान महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थं' नामक पुस्तक में मैंने उनके नाम का उल्लेख भी 'प्रियकारिणी त्रिशला' - इसप्रकार विशेषणविशेष्य के रूप में ही किया है। __काल्पनिक कहानियों में पारिवारिक एवं सामाजिक समस्याओं को स्पर्श किया गया है। ___ जहाँ एक ओर 'असन्तोष की जड़' और 'जरा-सा अविवेक' कहानियाँ जरा-सी भूल एवं अपरिपक्व व्यवहार के कारण होनेवाले पारिवारिक कलह एवं सामाजिक विघटन के चित्र प्रस्तुत करती हैं तो 'तिरिया-चरित्तर' यह स्पष्ट करती है कि कोरे शब्दों के संग्रह का नाम पाण्डित्य नहीं है, ज्ञान की गरिमा अनुभव से प्राप्त होती है। __ 'जागृत विवेक', 'परिवर्तन' एवं 'गाँठ खोल देखी नहीं' कहानियाँ भी कोरी कहानियाँ नहीं हैं, उनमें भी कुछ कहने का प्रयास किया गया है। __ 'जागृत विवेक' कहानी में विद्यार्जन में विनय और विवेक के स्थान का निर्धारण हुआ है। आचार्य धरसेन के निम्नांकित कथन में सब-कुछ आ गया है - __ "यद्यपि विवेक का स्थान सर्वोपरि है, किन्तु वह विनय और मर्यादा को भंग करनेवाला नहीं होना चाहिए। विवेक के नाम पर कुछ भी कर डालना तो महापाप है; क्योंकि निरंकुश विवेक पूर्वजों से प्राप्त श्रुतपरम्परा के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।"
इसीप्रकार 'गाँठ खोल देखी नहीं कहानी की निम्नांकित पंक्तियाँ भी ध्यान देने योग्य हैं -