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________________ [ आप कुछ भी कहो ____ 'आप कुछ भी कहो, पर हम तो इसे आपका चमत्कार ही मानेंगे' - इस अन्तिम वाक्य ने अज्ञान की जड़ें कितनी गहरी होती हैं - इस तथ्य को जिस सुन्दरता के साथ उजागर किया है, उससे समस्त चमत्कारिक कल्पनाओं की वास्तविक स्थिति सहज ही स्पष्ट हो जाती है। ___ गुण और दोष सम्बन्धी तात्त्विक अज्ञान के कारण कभी-कभी हम अक्षम्य अपराधों को भी गुणों के रूप में स्मरण करने लगते हैं। भूमिकानुसार आचरण सम्बन्धी ज्ञान के अभाव में भी इसप्रकार की भूलें होती हैं। साधुपुरुषों को अपने व्यवहार और विकल्पों की सीमा को पहिचानना ही चाहिए। समाज और देश में उत्तेजना फैलानेवाले कार्य श्रमणभूमिका में तो अक्षम्य अपराध ही हैं। ___ यद्यपि मोह-राग-द्वेष और तत्सम्बन्धित समस्त सदसदाचरण अपराध ही हैं; तथापि साधु और श्रावकों में अपनी-अपनी भूमिकानुसार सीमित राग-द्वेष तो पाये ही जाते हैं; पर ध्यान रहे पाये जाने मात्र से वे गुण नहीं हो जाते, रहते तो दोष ही हैं; उन्हें दोष नहीं मानना अपराध है। यदि वे दोष नहीं होते तो तदर्थ प्रायश्चित्त क्यों लेना पड़ता है ? 'अक्षम्य अपराध' कहानी इस तथ्य को उजागर करती है। सद्भाग्य और दुर्भाग्य की सच्ची समझ भी कितने लोगों को होती है ? लौकिक वैभव एवं भोगसामग्री की उपलब्धि ही जिनका ध्येय है, येन-केन प्रकारेण इन्हें प्राप्त कर लेनेवाले ही जिन्हें भाग्यशाली दिखते हैं; चक्रवर्ती भरत के अन्तरंग को अभिव्यक्त करनेवाली 'अभागा भरत और 'उच्छिष्ट भोजी' कहानियाँ उनकी आँखें खोल देने के लिए पर्याप्त हैं, बशर्ते उनकी ज्योति ही समाप्त न हो गई हो। प्रस्तुत प्रकाशन में दश कहानियाँ संगृहीत हैं; जिनमें से कुछ तो ऐतिहासिक एवं पौराणिक आख्यानों के आधार पर लिखी गई हैं, शेष काल्पनिक हैं।
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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