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[ आप कुछ भी कहो
पहुँचाने का लेखक का प्रयास सराहनीय है। पाप-पुण्य, आत्मा, साधुता जैसे कठिन विषय भी रोचक शैली में समझाये गए हैं । शेष कहानियाँ भी सन्मार्ग की प्रेरक हैं । सरल, सरस भाषा का उपयोग कहानियों की अपनी एक विशेषता है।
इस हृदयग्राही पठनीय सामग्री के लिए लेखक साधुवाद के पात्र हैं। * डॉ. वृद्धिचन्द्रजी जैन; जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी (राज.)
डॉ. भारिल्ल द्वारा लिखित कहानियाँ पढ़कर अतीव प्रसन्नता हुई। सरस एवं मर्मस्पर्शी कथाओं के माध्यम से जन-साधारण को आत्मधर्म, स्वरूपश्रद्धान, भेदविज्ञान, कर्तृत्वखण्डन आदि का आभास प्रदान कराने का लेखक का प्रयास सराहनीय है । लेखक सिद्धहस्त कथाकार एवं मौलिक निबन्धकार हैं - यह तो सर्वविदित ही है।
ऐसे उत्कृष्ट जनरुचि के प्रकाशनों के लिए कोटिशः साधुवाद। * श्री राजकुमारजी आयुर्वेदाचार्य; संपादक - अहिंसावाणी, निवाई (राज.)
पौराणिक सामग्री पर आधारित कथा-कहानियों के माध्यम से जैन इतिहास जन-जन तक पहुँचाने का यह नवीन प्रयास सराहनीय है। इसमें प्रथमानुयोग की कथाओं को सरल, सुबोध आधुनिक शैली में लिखा गया है। इन कथाओं में आगमिक मर्यादाओं का पूरा ध्यान रखा गया है। ___ इसकी सम्पूर्ण सामग्री मननीय है एवं मुद्रण आकर्षक नयनाभिराम है। * पं. भरत चक्रवर्तीजी न्यायतीर्थ; निदेशक - जैन साहित्य शोध संस्थान, मद्रास
प्रथमानुयोग का नया दृष्टिकोण प्रदान करने वाली ये कहानियाँ अतिशयोक्ति पूर्ण अवांछनीय वर्णनों से आवृत उपादेय तथ्यों को मुख्यरूप से उजागर करती हैं। वादिराज एवं श्रेष्ठिवर के संवाद में सच्चे दिगम्बर साधु का अंतरंग उजागर हुआ है। इसके माध्यम से लुप्तप्राय: साधुत्व के स्वरूप को स्पष्ट कर सुप्त समाज को जागृत करने का जो उपक्रम किया गया है, वह अत्यन्त सराहनीय है।