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अभिमत ]
* डॉ. भागचन्दजी' भास्कर'; जैन अनुशीलन केन्द्र, रा. विश्वविद्यालय, जयपुर
इस कृति में पौराणिक जैन कथाओं को जो सरस और सरल अभिव्यक्ति दी गई है, वह वस्तुतः प्रशंसनीय है ।
* डॉ. प्रेमचन्दजी जैन; जैन अनुशीलन केन्द्र, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
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उपदेश की अपेक्षा कथा-कहानी के माध्यम से कही हुई बात ज्यादा असर करती है और यदि वे कहानियाँ छोटी-छोटी संक्षिप्त व सरस हों, सरल भाषा और रोचक शैली में हों तो उनका क्या कहना ? डॉ. भारिल्ल कृत ' आप कुछ भी कहो' की कहानियाँ भी कुछ ऐसी ही हैं । वे अध्यात्म से सिक्त तथा सन्मार्ग की प्रेरक हैं। डॉ. भारिल्ल का व्यक्तित्व बहुरंगी हैं । लेखक हैं, वे वक्ता हैं । प्रेरक एवं प्रणेता हैं बहुश्रुत हैं। उनका धार्मिक अभ्यास विशाल एवं गहरा है। उनका यह नवीन प्रयोग सराहनीय है । * विद्यावारिधि डॉ. महेन्द्रसागरजी प्रचंडिया; अलीगढ़ (उ. प्र. )
यह कृति भली-भाँति कलात्मक शैली में उपन्यस्त की गई है। आगम के वातायन से ऐसे ललित, किन्तु उपयोगी प्रकाशन व्याप्त संताप को शान्त करने में भारी सहकारी भूमिका निर्वाह करेंगे ऐसी मेरी मान्यता है। साधारण मूल्य में अमूल्य सामग्री जुटाई गई है। आपने बहुत भलाई की है
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* डॉ. चन्दूभाई टी. कामदार; राजकोट (गुजरात )
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'आप कुछ भी कहो' आद्योपान्त पढ़ी। जिसप्रकार डॉक्टर मरीज को कड़वी दवा सीधी न देकर सुगरकोटेड करके देते हैं; उसीतरह डॉ. भारिल्ल ने भी भवरोग मिटाने के लिए जैन सिद्धान्तों के रहस्यों को इन ऐतिहासिक कहानियों के माध्यम से सुगरकोटेड करके भवरोग से पीड़ित लोगों तक पहुँचाया है। सभी का भवरोग मिट जाय ऐसी भावना भाता हूँ । * डॉ. कस्तूरचन्दजी 'सुमन'; जैन विद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी (राज.)
आरम्भिक पाँच कहानियाँ पैराणिक सामग्री पर आधारित हैं । इन कहानियों के माध्यम से जैन संस्कृति एवं इतिहास को जन-जन तक