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[ आप कुछ भी कहो
'जागृत विवेक' में जिस समस्या को छुआ गया है, वह अपने आप में एक बहादुरी का काम है । सुन्दर शब्द चयन और उपयुक्त कथानक द्वारा वह सब कुछ कह दिया गया है, जिसे कहने का साहस पुरुष नहीं जुटा पाते। 'अभागा भरत', 'उच्छिष्ट भोजी' एवं 'तिरिया-चरित्तर' भी बहुत सन्दर लगीं। * डॉ. राजारामजी जैन; एच.डी. जैन कॉलेज, आरा (बिहार)
एक ही साँस में सारी पुस्तक पढ़ गया। कहानियों के माध्यम से जैनधर्म के मूल तत्वों को हृदयस्पर्शी बनाकर आपने शिक्षित, अर्धशिक्षित अथवा अल्पशिक्षित आबाल-वृद्ध नर-नारियों का महदुपकार किया है। नैतिक जागरण के लिए ऐसे ग्रन्थों की ही आवश्यकता है। आपके इस नवीन सफल प्रयोग के लिए हार्दिक बधाई। * डॉ. गोपीचन्दजी 'अमर'; शोध-अधिकारी - भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली ___ 'आप कुछ भी कहो', लेकिन डॉ. भारिल्ल केवल आध्यात्मिक बात कहेंगे। वे तो वे, उनका समूचा परिवार अध्यात्ममय है। इसलिए इस संकलन की उनकी दसों कहानियों का कथानक तो मात्र बहाना ही है, मूल प्रतिपाद्य तो अध्यात्म ही है। * डॉ. ए. के. राय; प्रो. दर्शनविभाग, महाराज कॉलेज, छतरपुर (म.प्र.) __मैंने निष्ठापूर्वक पढ़ा। संकलन की समस्त कहानियाँ सरल, सुबोध एवं सुरुचिपूर्ण हैं । मिश्रित भाषा के प्रयोग एवं समुचित शब्दों के चयन से संकलन की शैली बोधगम्य तथा तर्कसंगत बन पाई है। कहानियों के माध्यम से तत्वज्ञान को जन सामान्य तक पहुँचाने का यह प्रयास प्रशंसनीय है। अविश्वास की जड़ों पर प्रहार और अपने क्रांतिकारी विचार से डॉ. भारिल्ल आधुनिक परिवेश में पले समाज की सोच को सही दिशा में ले जाने के लिए पूर्णतया तत्पर प्रतीत होते हैं।