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अभिमत ]
* पं. अमृतलालजी न्यायतीर्थ; साहित्याचार्य, ब्राह्मी विद्यापीठ, लाडनूं (राज.)
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प्रतिभाशाली सिद्धहस्त लेखक डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल की नयनाभिराम हृदयावर्जक अभिनय कृति ' आप कुछ भी कहो' को आद्योपांत पढ़कर असीम प्रसन्नता का अनुभव हुआ । आध्यात्मिक तथ्यों को रोचक कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करनेवाली यह कृति अपने ढंग की एक ही है । इसके लिए लेखक बधाई के पात्र हैं । परिष्कृत प्रांजल हिन्दी, आकर्षक लेखनशैली, कागज, छपाई - सफाई, प्रूफ-संशोधन एवं गेटअप आदि सभी उत्तम हैं ।
आशा है डॉ. भारिल्लजी की यह अनूठी कृति सभी वर्गों के पाठकों के द्वारा पढ़ी जायेगी और विद्वत्संसार में यत्र-तत्र - सर्वत्र समादृत होगी । * डॉ. देवेन्द्रकुमारजी शास्त्री; व्याख्याता, शा. महाविद्यालय, नीमच (म. प्र. )
हास्य-व्यंग्य की शैली में लेखक ने विचित्र शीर्षकों में तत्वज्ञान की बातों को सरल ढंग से प्रस्तुत करने का अभिनव प्रयोग किया है । 'तिरियाचरित्तर' एक ऐसी ही प्रतिनिधि कथा है, जो कल्पना में भी यथार्थ है और यथार्थ में भी कल्पना से अनुस्यूत है । आशा है पाठक इस रचना से अवश्य ही लाभान्वित होंगे ।
* डॉ. प्रेमचन्दजी रांवका, जैनदर्शनाचार्य; महाविद्यालय, मनोहरपुर (राज.)
अविवेक पर विवेक, अन्धश्रद्धा पर सम्यक्त्व, अहं पर विनय, असत्य पर सत्य, राग पर विराग, कोरे ज्ञान पर सम्यग्ज्ञान की आवश्यकता का प्रतिपादन करनेवाला यह कथाग्रन्थ जीवन-व्यवहार के लिए भी सम्यक् मार्गदर्शन प्रदान करता है । यह कृति कथातत्व के माध्यम से जैन- अजैन सभी पाठकों को अध्यात्मरस का पान कराती है ।
* डॉ. पारसमलजी अग्रवाल; विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म. प्र. ) प्रथम कहानी 'आप कुछ भी कहो' पढ़कर ऐसा लगा कि सात पृष्ठों में समयसार के कर्ताकर्म एवं बंध अधिकार का मर्म प्रस्तुत कर दिया है।