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विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन
(इ) आवश्यकवृत्तिप्रदेशव्याख्या - मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने हरिभद्रकृत आवश्यक वृत्ति पर 4600 श्लोक प्रमाण आवश्यकवृत्ति - प्रदेशव्याख्या या हारिभद्रीयावश्यकवृत्ति - टिप्पणक नामक वृत्ति लिखी है । (ई) आवश्यकनिर्युक्ति - दीपका - माणिक्यशेखरसूरि द्वारा रचित दीपिका आवश्यकनिर्युक्ति का शब्दार्थ एवं भावार्थ समझने के लिए बहुत उपयोगी है।
इनके अलावा जिनभट्ट, माणिक्यशेखर, कुलप्रभ, राजवल्लभ आदि ने आवश्यकसूत्र पर वृत्तियों का निर्माण किया है। इनके अतिरिक्त विक्रम संवत् 1122 में नमि साधु ने, संवत् 1222 में श्री चन्द्रसूरि ने, संवत् 1440 में श्री ज्ञानसागर ने, संवत् 1500 में धीरसुन्दर ने, संवत् 1540 में शुभवर्द्धनगिरि ने, संवत् 1697 में हितरुचि ने तथा सन् 1958 में पूज्य श्री घासीलालजी महाराज ने भी आवश्यकसूत्र पर वृत्ति का निर्माण कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है।
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(5) टब्बे - टीका युग के बाद लोकभाषाओं में सरल और सुबोध शैली में लिखे गए टिप्पण टब्बे कहलाते हैं। धर्मसिंह मुनि ने 18वीं शताब्दी में भगवती, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति को छोड़ कर शेष 27 आगमों पर बालावबोध टब्बे लिखे थे ।
अनुवाद युग - टब्बों के पश्चात् अनुवाद युग की शुरुआत हुई। मुख्य रूप से आगम- साहित्य का अनुवाद तीन भाषाओं में उपलब्ध है- अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी । विशेषावश्यक भाष्य का व्याख्या साहित्य
(अ) विशेषावश्यक भाष्य स्वोपज्ञवृत्ति - आचार्य जिनभद्रगणि ने स्वरचित विशेषावश्यकभाष्य पर स्वयं ने स्वोपज्ञवृत्ति लिखी । आचार्य ने यह टीका गणधर अर्थात् गाथा 1863 तक की टीका लिखकर ही दिवगंत हो गये। आगे का भाग कोट्याचार्य ने पूर्ण किया ।
(आ) विशेषावश्यक भाष्यविवरण कोट्याचार्य द्वारा आवश्यक सूत्र पर 13700 श्लोक प्रमाण विशेषावश्यकभाष्यविवरण नामक टीका लिखी गई है। कोट्याचार्य का काल विक्रम की आठवीं शताब्दी माना जाता है।
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(इ) शिष्यहिता नामक बृहद्वृत्ति आचार्य मलधारी हेमचन्द्र ने विशेषावश्यकभाष्य पर शिष्यहिता नामक बृहद्वृत्ति की रचना की है। अपने गुरु अभयदेवसूरि के देवलोकगमन के बाद वि. सं. 1168 में मलधारी हेमचन्द्र ने आचार्य पद प्राप्त किया था। जिस पर वे लगभग वि. सं. 1180 तक रहे। अतः विद्वानों ने इनका समय वि. सं. 1140-1180 निर्णीत किया है।
आचार्य मलधारी हेमचन्द्र ने भाष्य में जितने विषय आये हैं, उन सभी विषयों को बहुत ही सरल और सुगम दृष्टि से समझाने का प्रयास किया है । यह इस टीका की बहुत बड़ी विशेषता है। शंका-समाधान और प्रश्नोत्तर की पद्धति का प्राधान्य होने के कारण पाठक को अरुचि का सामना नहीं करना पड़ता। यत्र-तत्र संस्कृत कथानकों के उद्धरण से विषय - विवेचन और भी सरल हो गया है । यह टीका 28000 श्लोक प्रमाण विस्तृत है ।
मलधारी हेमचन्द्र ने दस ग्रंथ लिखे थे, जो इस प्रकार हैं - १. आवश्यक टिप्पण २. शतक विवरण ३. अनुयोगद्वार वृत्ति ४. उपदेशमाला सूत्र ५. उपदेशमालावृत्ति ६. जीवसमास विवरण ७. भवभावनासूत्र ८. भवभावनाविवरण ९. नन्दिटिप्पण १०. विशेषावश्यकभाष्य - बृहद्वृत्ति। इन ग्रंथों का कुल परिमाण 80000 श्लोक प्रमाण है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्याय में आवश्यक सूत्र एवं विशेषावश्यकभाष्य से सम्बन्धित सम्पूर्ण विषय का विस्तार से निरूपण हुआ है।
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