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सप्तम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में केवलज्ञान
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हैं, कुछ नहीं करते। अथवा जिनके वेदनीय आदि कर्म अधिक तथा आयुष्य कर्म अल्प होता है, वे केवली नियमतः समुद्घात करते हैं। 67 जिनके वेदनीय, नाम और गोत्र कर्म बन्धन और स्थिति की अपेक्षा आयु कर्म के समान होते हैं, वे केवली समुद्घात नहीं करते । इस तरह केवली समुद्घात किये बिना अनन्त केवली सिद्धि गति को प्राप्त हुए हैं।
दिगम्बर मान्यता - जिनकी आयु छह महीने शेष रहने पर केवलज्ञानी होते हैं, वे केवली नियम से समुद्घात को करते हैं। बाकी के केवलियों को आयुष्य अधिक होने पर समुद्घात करते भी है और नहीं भी, उनके लिए कोई नियम नहीं है अर्थात् जिनकी आयु के समान ही अन्य (वेदनीय
और नाम, गोत्र) कर्मों की स्थिति होती है, वे सयोगी केवली समदघात किये बिना शैलेशी अवस्था को प्राप्त होते हैं। जिनके वेदनीय नाम व गोत्र कर्म की स्थिति अधिक और आयु कर्म की स्थिति कम होती है, वे केवली भगवान् समुद्घात करके ही शैलेशी अवस्था को प्राप्त होते हैं।68 ऐसा ही उल्लेख षट्खण्डागम में भी है।69 स्पष्ट होता है कि दोनों परम्परा में यहीं स्वीकार किया गया है कि सभी केवली समुद्घात नहीं करते हैं।
विशेषावश्यकभाष्य का मत - आयुष्यकर्म जघन्य और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त शेष रहने पर केवली भगवान् समुद्घात करते हैं। कुछ आचार्यों का मत है कि केवली जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट छह मास शेष रहने पर समुद्घात करते हैं, लेकिन जिनभद्रगणि के अनुसार ऐसा मानना आगम के विपरीत है। क्योंकि आगमानुसार समुद्घात के अंतर्मुहूर्त बाद वे केवली शैलीशी अवस्था को प्राप्त होते हैं और उसके अंतर्मुहूर्त बाद मोक्ष पधार जाते हैं, प्रज्ञापना सूत्र के 36वें पद में बताया है कि समुद्घात के बाद वे प्रातिहार्य पाट-पाटला आदि वापस करते हैं, यह कैसे घटित होगा। क्योंकि छह मास आयु शेष रहते समुद्घात किया जाए, तो प्रातिहार्य लौटाने की कहाँ आवश्यकता है?170
दिगम्बर परम्परा के अनुसार तो आयुकर्म जब अंतर्मुहूर्त मात्र शेष रहता है तब केवली समुद्घात करते हैं। केवली समुद्घात का प्रयोजन
मुमुक्षु आत्मा के भवोपग्राही चार अघाती कर्मों का क्षय एक साथ ही होता है। यदि कोई ऐसा माने कि असमान स्थिति वाले वेदनीयादि कर्मों की स्थिति को आयुष्य कर्म के समान किस प्रकार करके, एक साथ चारों कर्मों का क्षय किया जाता है? कृतनाश आदि दोष से बचने के लिए कोई कहे की अनुक्रम से ही कर्मों का क्षय होता है, तो यह भी उचित नहीं है, क्योंकि पहले आयुष्य कर्म पूर्ण हो जाये तो, आयुष्य के अभाव में शेष दूसरे कर्मों का क्षय करने के लिए जीव किस आधार पर संसार में रहता है? यदि मोक्ष में चला जाता है, तो कर्म सहित (वेदनीयादि तीन कर्म क्षय करना शेष है) जीव मोक्ष कैसे जाता है? उपुर्यक्त सभी प्रश्नों का उत्तर है कि जिन मुमुक्षु आत्माओं के वेदनीय आदि चार अघाती कर्म स्वभाव से समान स्थिति वाले हैं, वे तो बिना समुद्घात किये कर्मों का क्षय करके मोक्ष को प्राप्त करते हैं, लेकिन जिनके आयुष्य कर्म तो अल्प है और वेदनीयादि तीन कर्मों की स्थिति अधिक है तो वे केवली समुद्घात द्वारा वेदनीयादि तीन कर्मों की स्थिति आयुष्य कर्म के समान करके मोक्ष प्राप्त करते हैं। यदि समुद्घात को स्वीकार नहीं करेंगे तो अमोक्षादि दोषों की प्राप्ति होगी। 167. आवश्यकचूर्णि भाग 1, पृ. 579
168. भगवती आराधना, गाथा 2103-2105 169. षटखण्डागम, पु. 1, 1.1.60, पृ. 304
170. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 3048 से 3049 171. भगवती आराधना, गाथा 2106, स यदान्तर्मुहर्तशेषायुष्कस्तत्। सर्वार्थसिद्धि 9.44 पृ. 360, षट्खण्डागम (धवला),
पु. 13, 5.4.26 पृ. 83-84