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विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन
एक साथ उत्पाद और व्यय होता है, वैसे ही ज्ञान और आवरण में भी जानना चाहिए। 162 केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण कर्म का क्षय होने पर केवली समस्त ज्ञेय को केवलज्ञान से सदा जानता है और केवलदर्शन से सदा देखता है
मोक्ष की प्राप्ति में केवली समुद्घात की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, अतः केवली स्वरूप पर यहाँ विचार अभीष्ट है।
केवली समुद्घात
समुद्घात समुद्घात शब्द सम+उदघात से मिलकर बना है। सम् एकीभावपूर्वक उत् प्रबलता से, घात घात करना। तात्पर्य यह हुआ कि एकाग्रता पूर्वक प्रबलता के साथ घात करना समुद्घात कहलाता है। समुद्घात सात प्रकार के हैं 1. वेदना, 2. कषाय, 3. मारणांतिक, 4. वैक्रिय, 5. तैजस, 6. आहारक और 7. केवली ।
अतः केवली समुद्घात
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जब जीव वेदनादि समुद्घातों में परिणत होता है, तब कालान्तर में अनुभव करने योग्य वेदनीयादि कर्मों के प्रदेशों को उदीरणाकरण के द्वारा खींचकर, उदयावलिका में डालकर, उनका अनुभव करके निर्जीर्ण कर डालता है, अर्थात् आत्मप्रदेशों से पृथक् कर देता है। यह घात की प्रबलता है। पूर्वकृत कर्मों का झड़ जाना आत्मा से पृथक् हो जाना ही निर्जरा है।164
विशेषावश्यकभाष्य में जिनभद्रगणि ने केवली समुद्घात का वर्णन ज्ञान के प्रसंग पर नहीं करते हुए सिद्धों के नमस्कार के वर्णन में किया है अतः भाष्य तथा अन्य ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो वर्णन मिलता है, उसकी यहाँ समीक्षा की जा रही है।
केवली समुद्घात जिस प्रयत्न में प्रबलता से कर्मों की स्थिति और अनुभाग का समीचीन उद्घात होता है, वह केवली समुद्घात है। उसमें उदीरणावलिका में प्रविष्ट कर्म पुद्गलों का प्रक्षेपण होता है, वेदनीय कर्मदलिकों को आयुष्य कर्मदलिकों के समान करने के लिए सब आत्मप्रदेशों का लोकाकाश में निस्सरण होता है और कर्मों का शीघ्रता से क्षय होता है। इसका कालमान अन्तर्मुहूर्त ( आठ समय) है 45
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जब वेदनीय की स्थिति अधिक हो और आयु कर्म की अल्प हो तब स्थिति समान करने के लिए केवली भगवान् केवली समुद्घात करते हैं। जैसे मदिरा में फेन आकर शांत हो जाता है उसी तरह समुद्घात में देहस्थ आत्मप्रदेश बाहर निकलकर फिर शरीर में समा जाते हैं, ऐसा समुद्घात केवली करते हैं। 166
162. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1340
164. युवाचार्य मधुकरमुनि, प्रज्ञापना सूत्र, भाग 3, पृ. 230
165. आवश्यकचूर्णि भाग 1, पृ. 579
केवली समुद्घात कौन करता है ?
श्वेताम्बर मान्यता अंतर्मुहर्त से लेकर अधिकतम छह माह की आयु शेष रहने पर जिन्हें केवलज्ञान प्राप्त होता है, वे निश्चित रूप से समुद्घात करते हैं । केवलज्ञान प्राप्ति के समय जिनकी आयु छह मास से अधिक होती है, वे समुद्घात नहीं करते। केवलज्ञान प्राप्ति के समय जिनकी आयु छह मास से अधिक है, उनकी जब छह माह आयु शेष रहती है, तब उनमें से कुछ समुद्घात करते
163. विशेषावश्यक भाष्य गाथा 1341
166. वेदनीयस्स बहुत्वादल्पत्वाच्चायुषो नाभोगपूर्वकमायुः समकरणार्थे द्रव्यस्वभावत्वात् सुराद्रव्यस्य फेनवेगवुद्बुदाविर्भावोपशमनवद्देहस्थात्मप्रदेशानां बहिः समुद्घातनं केवलिसमुद्घातः । तत्त्वार्थराजवार्तिक, 1.20.12 पृ. 56