________________ [386] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन लब्धियों के सम्बन्ध में प्राप्त मतान्तर कुछेक आचार्य बीस ही लब्धियाँ स्वीकार करते हैं, वे इस प्रकार है - 1. आमर्ष औषधि 2. श्लेष्मौषधि 3. मलौषधि 4. विपुडौषधि 5. सर्वौषधि 6. कोष्ठबुद्धि 7. बीजबुद्धि 8. पदानुसारी बुद्धि 9. संभिन्नश्रोता 10. ऋजुमति 11. विपुलमति 12. क्षीणमधुघृताश्रवा लब्धि 13. अक्षीणमहानसी लब्धि 14. वैक्रियलब्धि 15. चारणविद्या 16. विद्याधर 17. अर्हन्त 18. चक्रवर्ती 19. बलदेव और 20. वासुदेव। लेकिन यह कथन ऐकांतिक नहीं है। क्योंकि लब्धियाँ विशेष - अतिशय हैं। वे जीवों के कर्मक्षय आदि से प्राप्त होती हैं, वे अपरिमति हैं। जैसे कि गणधर लब्धि, तैजसलब्धि, आहारकलब्धि, पुलाकलब्धि, आकाशगमनलब्धि आदि बहुत लब्धियाँ होती हैं। ये बीस लब्धियाँ भवसिद्धिक पुरुषवेदी जीवों के होती हैं। इसमें से जिनलब्धि, बलदेव, चक्रवर्ती, वासुदेव, संभिन्नश्रोता, जंघाचारण और पूर्वधर ये सात लब्धियाँ भवसिद्धि तक स्त्रीवेदी जीवों के नहीं होती हैं, शेष 13 लब्धियाँ होती हैं। उपर्युक्त सात एवं ऋजुमति, विपुलमति ये नौ लब्धियाँ अभवी पुरुषवेदी के नहीं होती है। अभवी स्त्रीवेदी में उपरोक्त नौ और क्षीणमधुघृताश्रवालब्धि ये दस लब्धियाँ छोड़कर शेष दस लब्धियाँ होती है। 70 उपर्युक्त मत को मानने वाले ऐसा कहते हैं कि 20 लब्धियाँ भवी के होती हैं और बाकी भवी और अभवी दोनों में साधारण रूप से होती हैं। उनका ऐसा कहना भी दोषयुक्त है, क्योंकि इन 20 के अलावा दूसरी गणधर, पुलाक और आहारक लब्धियाँ भी मात्र भवी के ही होती हैं। उपर्युक्त 20 लब्धियों में से वैक्रियलब्धि, आमर्ष औषधि आदि लब्धियाँ अभवी के भी होती हैं। चक्रवर्ती लब्धि भवी के ही क्यों होती है ___ भगवती सूत्र' १.(भगवतीसूत्र, श. 12, उ. 9) में कहा है कि "हे भगवन् ! चक्रवर्ती हो कर वापस दूसरी बार चक्रवती बने तो उसमें काल से कितना अन्तर होता है। हे गौतम! जघन्य एक सागरोपम झाझेरा और उत्कृष्ट अर्धपुद्गल परावर्तन से कुछ कम अन्तर होता है।" इससे स्पष्ट होता है कि चक्रवर्तीलब्धि भवी के ही होती है। क्योंकि अर्धपुद्गल परावर्तन प्रमाण अन्तर काल जिसका भविष्य में मोक्ष होने वाला है, उसी की अपेक्षा घटित होता है और अभवी का उत्कृष्ट अन्तर वनस्पति काल जितना बताया है। फिर इन्द्र, चक्रवर्ती आदि पदयोग्य कर्म का बंध भी भवी के ही कहा है। उसमें चक्रवर्ती भवी ही होता है। 72 28 लब्धियों में से भव्य-अभव्य जीवों में प्राप्त लब्धियाँ__ 1. भवी-पुरुष में 28 ही लब्धिया पाई जाती है। 2. भवी-स्त्री में अहँत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, संभिन्नश्रोता, चारण, पूर्वधर, गणधर, पुलाक और आहारक इन दस लब्धियों को छोड़कर शेष अठारह लब्धियाँ पाई जाती हैं। भगवान् मल्लिनाथ स्त्री रूप में तीर्थंकर बने यह आश्चर्य था। 3. अभवी-पुरुष में अर्हत, केवली, ऋजुमति, विपुलमति, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, संभन्निश्रोता, चारण, पूर्वधर गणधर, पुलाक और आहारक इन तेरह को छोड़कर शेष पन्द्रह लब्धियाँ पाई जाती है। 4. अभवी-स्त्री में अभव्य पुरुष में नहीं होने वाली तेरह और मधुघृत सर्पिराश्रव ये चौदह लब्धियाँ नहीं पाई जाती है तथा शेष चौदह लब्धियाँ पाई जाती हैं। 469. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 802 471. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 804 470. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 802-803 472. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 805