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________________ पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान [385] ग्रहण करती है, वह बीजबुद्धि कहलाती है और उस बुद्धि से युक्त मुनि बीजबुद्धि (गणधर) लब्धिवान् कहलाता है। 85 22. आहारक लब्धि - प्राणीदया, तीर्थंकर ऋद्धि दर्शन, शंका-निवारण आदि के लिए अन्य क्षेत्र में विराजित तीर्थंकर अथवा केवली के पास भेजने के लिए जिस लब्धि से चौहह पूर्वधर साधक एक हाथ प्रमाण का पुतला बनाते है, वह आहारक लब्धि कहलाती है। 23. वैक्रिय लब्धि - जिस लब्धि से मनचाहे रूप बनाने की शक्ति प्राप्त होती है, वह लब्धि मनुष्य और तिर्यंच को तप-साधना से और देव तथा नारकी को भव-प्रत्यय से प्राप्त होती है। 24. गणधर लब्धि - लोकोत्तर ज्ञान, दर्शनादि गुणों के समूह (गण) को धारण करके उसे सूत्र रूप में गूंथने वाले गणधर कहलाते हैं। जिससे गणधर पद की प्राप्ति हो, उसे गणधर लब्धि कहते हैं। 25. तेजोलेश्या लब्धि - बेले-बेले पारणा करने वाले और पारणे में एक मुट्ठी उड़द के बाकुले एवं चुल्लु भर पानी लेने वाले और सूर्य की आतापना लेने वाले साधक को यह लब्धि प्राप्त होती है। इस लब्धि से मुंह तेज (अग्नि) निकाल कर अनके योजन प्रमाण क्षेत्र को जलाया जा सकता है। 26. शीत लेश्या लब्धि - करुणा भावना से प्रेरित हो कर तेजोलेश्या को शान्त करने में समर्थ शीतल तेज विशेष को छोड़ना शीत लेश्या है, जिससे यह शक्ति प्राप्त हो वह शीतलेश्या लब्धि है। 27. अक्षीणमहानसी लब्धि - जिस लब्धि से एक साधु के लिए लाई गई भिक्षा बहुत से साधुओं के द्वारा खाए जाने पर भी खत्म नहीं हो, लेकिन अन्त में स्वयं के भोगने पर ही वह आहार समाप्त होता है, वह अक्षीणमहानसी लब्धि कहलाती है। ___28. पुलाक लब्धि - जिस लब्धि से साधु संघादि की सुरक्षा के लिए चक्रवर्ती और उसकी सेना को दण्ड दे, उस लब्धि से युक्त मुनि पुलाक लब्धिमान् कहलाता है। उपुर्यक्त 28 लब्धियों के अलावा अन्य भी कई लब्धियाँ है - अणुत्वलब्धि, महत्तलब्धि, लघुत्वलब्धि, गुरुत्वलब्धि, प्राप्तिलब्धि, प्राकाम्यलब्धि, वशित्वलब्धि, अप्रतिगामित्व लब्धि, अन्तर्धानलब्धि, कामरूपित्वलब्धि। उपुर्यक्त लब्धियों का विशेष स्वरूप प्रवचनसारोद्धार466 एवं जैन सिद्धान्त बोल संग्रह467 में वर्णित है। दिगम्बर परम्परा में लब्धियां षट्खण्डागम में 44 जिनों को नमस्कार किया गया है। जिसमें 33 लब्धियों को धारण करने वालों को भी नमस्कार किया गया है, यथा 1. अवधिज्ञानी 2. कोष्ठबुद्धि 3. बीजबुद्धि 4. पदानुसारी 5. सम्भिन्नश्रोता 6. ऋजुमति 7. विपुलमति 8. दशपूर्वधर 9. चतुर्दशपूर्वधर 10. वैक्रिय 11. चारण 12. आकाशगामिनी 13. आशीविष 14. दृष्टिविष 15. उग्रतप 16. महातप 17. घोरतप 18. घोरपराक्रम 19. घोरगुण 20. अघोरगुणब्रह्मचारी 21. आम|षधि 22. खेलौषधि 23. जल्लौषधि 24. विष्ठौषधि 25. सौषधि 26. मनोबल 27. वचनबल 28. कायबल 29. क्षीरास्रवी 30. सर्पिस्रवी 31. मधुस्रवी 32. अमृतस्रवी 33. अक्षीणमहानस। धवलाटीकाकार ने उनकी व्याख्या की है। जिज्ञासुओं का विशेष वर्णन के लिए षट्खण्डागम देखना चाहिए।168 465. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 799-800 466. प्रवचनसारोद्धार, द्वार 270, गाथा 1492-1508, पृ. 408-414 467. जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग 6, बोल 28, पृ. 289-299 468, षट्खण्डागम पु. 1, सूत्र 4.1.1-4.1.44, पृ. 2-134
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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