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पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान
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शंका तीव्र और मंद द्वार में अवधिज्ञान के विषय का बढ़ते घटते क्रम में वर्णन करना चाहिए था, लेकिन यहाँ स्पर्धक अवधिज्ञान का वर्णन किया है, इसका क्या कारण है?
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समाधान - अनुगामी और अप्रतिपाती स्पर्धक अति विशुद्ध होने से तीव्र कहलाते हैं तथा अननुगामी और प्रतिपाती स्पर्धक अशुद्ध होने से मंद कहलाते हैं और मिश्र स्पर्धक मध्यम कहलाते हैं। इसलिए स्पर्धक का स्वरूप कहने से तीव्र - मंद द्वार का भी स्वरूप समझ में आ जाएगा। अनुगामी और अप्रतिपाती स्पर्धकों में अंतर
अप्रतिपाती स्पर्धक अवधिज्ञानी के साथ अवश्य जाते हैं अर्थात् अप्रतिपाती स्पर्धक अनुगामी ही होते हैं, लेकिन अननुगामी नहीं होते हैं। जबकि अनुगामी स्पर्धक प्रतिपाती, अप्रतिपाती और उभय (मिश्र) प्रकार के होते हैं। जैसे कि अनुगामी स्पर्धक (स्वस्थ आंखों वाले के समान) अप्रतिहत नेत्र के समान अप्रतिपाती है अथवा अस्वस्थ नेत्र वाले के समान प्रतिपाती भी होते हैं, यही इनमें अंतर है। अननुगामी और प्रतिपाती स्पर्धकों में अंतर
प्रतिपाती स्पर्धक गिरते ( नष्ट) भी हैं और गिरने के बाद किसी समय अन्य स्थान पर जाने से उत्पन्न भी हो जाते हैं, लेकिन अननुगामी स्पर्धकों में ऐसा नहीं होता है। क्योंकि जिस स्थान में रहते हुए जो स्पर्धक उत्पन्न होते हैं उसी स्थान में रहते हुए नष्ट होते हैं अथवा नहीं भी होते हैं। जो नष्ट होते है, वे स्पर्धक पुनः उत्पत्ति स्थान में आते ही उत्पन्न हो जाते हैं । यही इन दोनों में अंतर है। विशुद्धि तथा संक्लेश से स्पर्धकों की तीव्रता और मंदता होती है। ऐसे स्पर्धक विशुद्धि और संक्लेश के वश होकर प्रायः मनुष्य और तिर्यंच में ही होते हैं 194
इस तीव्रमंद द्वार में आनुगामिक और प्रतिपाती आदि चारों का उल्लेख स्पर्धक स्वभाव के रूप में
हुआ है |395
स्पर्धक
प्रतिपाती
आनुगामिक
अनानुगामिक
अप्रतिपाती मिश्र प्रतिपाती
प्रतिपाती - अप्रतिपाती अवधिज्ञान
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नंदीसूत्र के अनुसार जो अवधिज्ञान उत्पन्न होने के बाद नष्ट होता है वह प्रतिपाती है और जो नष्ट नहीं होता वह अप्रतिपाती है अर्थात् जो अवधिज्ञान अलोकाकाश में एक प्रदेश अथवा उससे अधिक देखने की क्षमता रखता हो, वह अप्रतिपाती अवधिज्ञान है । 396
अप्रतिपाती
मिश्र प्रतिपाती
मिश्र
394. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 744745 396. युवाचार्य मधुकरमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 40-41
397. प्रतिपातीति विनाशी विद्युतप्रकाशवत् तद्विपरीतोऽप्रतिपाती । - तत्त्वार्थराजवार्तिक 1.22.5 पृ. 56
अप्रतिपाती
मिश्र
अकलंक का कहना है कि प्रतिपाती को बिजली के प्रकाश के समान माना है। जैसे बिजली झपक के गायब होती है वैसे ही प्रतिपाती भी चला जाता है। इसके विपरीत अप्रतिपाती होता है 97 अप्रतिपाती नियम से आनुगामिक होता है, लेकिन आनुगामिक प्रतिपाती और अप्रतिपाती दोनों प्रकार का होता है।
395. आवश्यक निर्युक्ति गाथा 59-60, विशेषावश्यकभाष्य गाथा 734-735