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पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान
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तृतीय चतुर्थ
छठी
क्रमांक नारकी जघन्य
उत्कृष्ट प्रथम
रत्नप्रभा 3 ।। गाऊ (कोस) 4 गाऊ (कोस)/ एक योजन द्वितीय शर्कराप्रभा 3 गाऊ
3 ।। गाऊ बालुकाप्रभा 2 ।। गाऊ
3 गाऊ पंकप्रभा 2 गाऊ
2 ।। गाऊ पंचम धूमप्रभा 1 ।। गाऊ
2 गाऊ तम:प्रभा 1 गाऊ
1 ।। गाऊ सप्तम तमस्तमप्रभा आधा गाऊ
1 गाऊ यहाँ पर नारकी का जघन्य अवधि विषय क्षेत्र सातवीं नारकी की अपेक्षा 1/2 (1) गाऊ बताया है जबकि गाथा 690 में नारकी में जघन्य अवधिज्ञान एक गाऊ बताया है। इसमें कोई विरोधाभास नहीं क्योंकि वहाँ जो बताया है वह सभी नारकी के उत्कृष्ट की अपेक्षा जघन्य (एक गाऊ सातवीं नरक का उत्कृष्ट है) का कथन किया है, अत: इसमें कोई विरोधाभास नहीं है। पहली नारकी का उत्कृष्ट एक योजन अथवा चार गाऊ कहा, क्योंकि चार गाऊ-एक योजन होता है।38
धवलाटीकाकार काल प्रमाण की स्पष्टता करते हुए कहते हैं कि रत्नप्रभा नारक का उत्कृष्ट कालमान मुहूर्त में एक समय अधिक है और बाकी की छह पृथ्विओं के नारकों का उत्कृष्ट काल प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है।39 नारकी में जो क्षेत्र का विषय कहा है उसके अनुसार ही द्रव्य, काल और भाव को जानना चाहिए। देवता के अवधिज्ञान का क्षेत्र
देवता चार प्रकार के होते हैं - भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक। भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी देवों के अवधिज्ञान का क्षेत्र
आवश्यकनियुक्ति में देवों का जघन्य अवधि प्रमाण 25 योजन बताया है।40 भवनपति और व्याणव्यन्तर देवों में जिनकी स्थिति दस हजार वर्ष की होती है, उनके अवधि का जघन्य क्षेत्र 25 योजन का माना गया है। जिनकी पल्योपम की स्थिति है उनके अविधज्ञान का विषय संख्यात द्वीप समुद्र है और सागरोपम (आधा से एक सागरोपम) की आयु वाले भवनपतियों के अवधिज्ञान का विषय असंख्यात द्वीप समुद्र है अर्थात् भवनपति देवों के अवधि का जघन्य विषय 25 योजन और उत्कृष्ट असंख्यात द्वीप समुद्र है। व्याणव्यन्तर देवों के अवधि का जघन्य विषय 25 योजन और उत्कृष्ट संख्यात द्वीप समुद्र है। ज्योतिषी देवों के अवधिज्ञान का जघन्य और उत्कृष्ट क्षेत्र संख्यात योजन अर्थात् संख्यात द्वीप समुद्र का है, लेकिन जघन्य से उत्कृष्ट बड़ा होता है। जिनभद्रगणी ने भी भवनपति, व्याणव्यंतर और ज्योतिषी के अवधि का यही परिमाप बताया है।41
षट्खण्डागम के अनुसार भवनपति, वाणव्यंतर में 25 योजन और ज्योतिषी देवों का जघन्य प्रमाण संख्यात योजन का है। असुरकुमार का क्षेत्र की अपेक्षा उत्कृष्ट अवधिप्रमाण असंख्यात कोडाकोड़ी योजन का होता है। शेष बाकी नागकुमार आदि नव भवनपति, आठ वाणव्यंतर और पांच ज्योतिषी देवों तक अवधि प्रमाण असंख्यात हजार योजन का है।42 अकलंक ने भी यही प्रमाण बताया है, उन्होंने कुछ विशेष वर्णन किया है। जिसके अनुसार उपर्युक्त प्रमाण नीचे की ओर समझना
238. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 694
239. षट्खण्डागम पु. 13, सूत्र 5.5.59, गाथा 16, पृ. 326 240. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 51
241. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 701, 702 242. षट्खण्डागम, पु. 13, सूत्र 5.5.59, गाथा 10,11, पृ. 314-315