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________________ [336] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन उत्कृष्ट देशावधि और परमावधि में अन्तर उत्कृष्ट अवधि में द्रव्यादि चारों तुल्य हैं। परमावधि में उत्कृष्ट क्षेत्र तो होता ही है तथा अन्य द्रव्यादि उत्कृष्ट आगमकारों को जैसे इष्ट हो वैसे मान लेना चाहिए। इस अपेक्षा से उत्कृष्ट देशावधि और परमावधि एकार्थक भी हो सकते हैं अथवा क्षेत्र की पराकाष्ठा होते ही परमावधि कह दिया जाता है, लेकिन उसमें द्रव्य-पर्याय आदि की पराकाष्ठा नहीं होती। जबकि उत्कृष्ट देशावधि में द्रव्यादि चारों उत्कृष्ट होते हैं। सर्वप्रथम काल की पराकाष्ठा होती है, फिर क्षेत्र की पराकाष्ठा, फिर द्रव्यों की और अन्त में पर्यायों की पराकष्ठा होती है। प्रश्न - क्या परमावधि में चारों की पराकाष्ठा इष्ट न हो तो भी अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान हो सकता है? उत्तर - परमावधि के बिना भी कषायों का क्षय होने से अन्य कर्म क्षय होकर केवलज्ञान हो जाता है। प्रश्न - कौन-से अवधिज्ञानी परमाणु को जानते हैं? उत्तर - संपूर्ण लोक को जानने वाले अवधिज्ञानी तो स्कंधों को ही जानते हैं, आगे (अलोक में) ज्यों-ज्यों अवधिज्ञान की शक्ति बढ़ती है, त्यों-त्यों वे सूक्ष्मतर स्कंधों को जानते हैं, यावत् परम अवधिज्ञानी परमाणु को भी जानते हैं। सर्वावधि धवलाटीका के अनुसार सर्व अवधि (मर्यादा) जिस ज्ञान की होती है वह सर्वावधिज्ञान है। सर्व के तीन अर्थ हैं - 1. सर्व का एक अर्थ केवलज्ञान है, जो मुख्य अर्थ है और केवलज्ञान का विषय औपचारिक अर्थ है अर्थात् केवलज्ञान का विषय जो-जो अर्थ होता है वह भी उपचार से सर्व कहलाता है 16 2. सभी (सर्व) का अर्थ सकल द्रव्य नहीं कर सकते हैं, क्योंकि जिससे परे कोई द्रव्य न हो उसके अवधि नहीं होता है, इसलिए सर्व शब्द का अर्थ सभी रूपी द्रव्यों में जिसकी अवधि (मर्यादा) है, वह सर्वावधि है। ____3. आकुंचन, प्रसारण आदि को प्राप्त हो वह पुद्गल द्रव्य सर्व है, वही जिसकी मर्यादा है वह सर्वाविध है।17 देशावधि और परमावधि की तरह सर्वावधि का अवान्तर भेद नहीं होता है अर्थात् वह उत्कृष्ट परमावधि के क्षेत्र से बाहर असंख्यात लोक क्षेत्रों को जानने वाला है। इसके जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट कोई विकल्प नहीं होते हैं।18 __अकलंक ने सर्वावधि का प्रमाण उत्कृष्ट पमावधि से असंख्यात गुणा अधिक माना है। काल, क्षेत्र, द्रव्य और भाव के संदर्भ में भी ऐसा ही जानना चाहिए।219 अकलंक के अनुसार परमावधि सर्वावधि से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से न्यून है इसलिए, परमावधि भी वास्तव में देशावधि है।220 216. षट्खण्डागम, पु. 13, सूत्र 5.5.59 गाथा 15 पृ. 323 217. एत्थ सव्वसद्दो सयलदव्ववाचओ ण घेत्तव्वो, परदो अवज्जिमाणदव्वस्स ओहित्ताणुववत्तीदो। किन्तु सव्वसद्दो सव्वेगदेसम्हि रूवयदे वट्टमाणो घेत्तव्यो। तेण सव्वरूवयदं ओही जिस्से त्ति संबंधो कायव्वो। अघवा, सरति गच्छति आकुंचन-विसर्पणादीनीति पुद्गलद्रव्यं सर्व, तमोही जिस्से सा सव्वोही। - षट्खण्डागम, पु. 9, सूत्र 4.1.4 पृ. 47 218. तत्र देशावधेः सर्वजघन्यस्यक्षेत्रमुत्सेधांगुलस्याऽसंख्येयभागः। - तत्त्वार्थराजवार्तिक, सूत्र 1.22.5 पृ. 56 219. सर्वावधिरुच्यते-असंख्येयानामसंख्येयभेदत्वादुत्कृष्टपरमावधि क्षेत्रमसंख्येयलोकगुणितमस्सक्षेत्रं । - तत्त्वार्थराजवार्तिक, सूत्र 1.22.5 पृ. 57 220. सर्वशब्दस्स साकल्यवाचित्वात्द्रव्यक्षेत्रकालभावैः सर्वावधेरंतः पातिपरमावधिरत: परमावधिरति देशावधिरेवेति द्विविध एवावधि: सर्वावधिर्देशावधिश्च। - तत्त्वार्थराजवार्तिक सूत्र 1.22.5 पृ. 57
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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