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पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान
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मन से अग्रहण योग्य वर्गणाएं होती हैं। इसी प्रकार श्वासोच्छ्वास (आनापान)-भाषा-तैजसआहारक-वैक्रिय और औदारिक वर्गणाओं के अग्रहण योग्य और ग्रहण योग्य फिर अग्रहण योग्य इस प्रकार प्रत्येक की तीन-तीन भेद (द्रव्य वर्गणा से विपरीत क्रम) होने से क्षेत्र से जानी जाती हैं।196 काल वर्गणा
इसमें वर्गणा का कथन काल के आधार पर किया जाता है। एक समय से लेकर असंख्यात समय के आधार पर इनका उल्लेख किया जाता है। किसी विवक्षित परिमाण से सामान्यपने से उन परमाणुओं अथवा स्कंध जिनकी एक समय की स्थिति है, को एक वर्गणा रूप जानना। इसी प्रकार एक-एक समय की वृद्धि से संख्यात स्थिति वाले परमाणु आदि की संख्यात वर्गणाएं और असंख्य समय की स्थिति वाले परमाणु आदि की असंख्यात वर्गणाएं हैं। इस प्रकार इन वर्गणाओं से सम्पूर्ण पुद्गलास्तिकाय का ग्रहण होता है, क्योंकि एक समय से लेकर असंख्यात समय की स्थिति से ज्यादा पुद्गलों की स्थिति नहीं होती है। भाव वर्गणा
वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श की पर्याय के आधार पर भाव वर्गणा को समझाया जाता है। एक गुण कृष्ण वर्ण वाला परमाणु होता है, वह एक वर्गणा, द्विगुण कृष्ण वर्णवाला परमाणु आदि दूसरी वर्गणा इस प्रकार एक-एक गुण वृद्धि से संख्यात कृष्ण वर्गणा वाले परमाणु आदि की संख्यात वर्गणा, इसी प्रकार असंख्यात कृष्ण वर्गणा वाले परमाणु की असंख्यात वर्गणा और अनंत कृष्ण वर्गणा वाले परमाणु की अनंत वर्गणा होती है। इस प्रकार शेष चार वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श इस प्रकार कुल 20 वर्णादि के प्रत्येक भेद की ऊपर कहे अनुसार एक गुण की एक, संख्यात गुण की संख्यात, असंख्यात गुण की असंख्यात और अनंत गुण की अनंती वर्गणाएं होती हैं। इस प्रकार संक्षिप्त रूप में भाव वर्गणा बीस प्रकार की होती है-पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श। इनमें से प्रत्येक की एक गुण वाले द्रव्य की एक वर्गणा यावत् अनन्त गुण वाले द्रव्यों की अनन्त वर्गणाएं हैं।
गुरुलघुपर्याय वाले स्थूलपरिणामी द्रव्यों की एक वर्गणा है। अगुरुलघुपर्याय वाले सूक्ष्म परिणामी द्रव्यों की एक वर्गणा है। इस प्रकार भाव वर्गणाओं के इन दो वर्गों में सम्पूर्ण पुद्गलास्तिकाय का समावेश हो जाता है, क्योंकि उपर्युक्त वर्णादि भाव के सिवाय अन्यत्र पुद्गलों का सद्भाव नहीं होता है।98
इस प्रकार अवधिज्ञानी कौन से रूपी द्रव्यों को जानता है, इसका स्वरूप बताने के लिए वर्गणाओं के स्वरूप का वर्णन किया गया है। व्यवहार और निश्चय नय से गुरुलघु-अगुरुलघु द्रव्य
जो द्रव्य ऊंचा और तिर्यक् फैला होता है, लेकिन स्वभाव से ही नीचे गिरता है वह गुरु द्रव्य है- जैसे मिट्टी का लोंदा (ढेला)। जो द्रव्य स्वभाव से ही ऊर्ध्व गति करने वाला होता है वह लघु द्रव्य होता है, जैसे दीपक की लौ। जो द्रव्य ऊंची अथवा नीची गति करता है वह गुरुलघु द्रव्य है, जैसे वायु आदि। जो द्रव्य स्वभाव से ही ऊंची, नीची, तिर्यक् दिशा में गति नहीं करता है अथवा जो सर्वत्र गति करने वाला होता है उसे अगुरुलघु द्रव्य कहते हैं, जैसे आकाश और परमाणु आदि। यह उल्लेख व्यवहार नय के अनुसार किया जाता है।199
निश्चयनय के अनुसार एकांत रूप से न तो कोई गुरु द्रव्य होता है और न ही कोई लघु द्रव्य होता है। जैसे कि व्यवहार नय से मिट्टी के ढेले को गुरु द्रव्य कहा है, लेकिन पर प्रयोग से उसकी 196. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 647-649
197. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 650 198. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 651-653
199. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 659