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पंचम अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में अवधिज्ञान
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अवधिज्ञान की परिभाषा श्वेताम्बर आचार्यों की दृष्टि में
जिनभद्रगणि (सप्तम शती) के अनुसार - जो अवधान से जानता है, वह अवधिज्ञान है। अंगुल के असंख्येय भाग क्षेत्र को जानने वाला अवधिज्ञानी आवलिका के असंख्येय भाग तक जानता है। इस प्रकार जो परस्पर नियमित द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि को जानता है, वह अवधिज्ञान है।
जिनदासगणि (सप्तम शती) कहते हैं कि जो मर्यादित है वह अवधि है, उससे जो अवधान (मर्यादित) किया जाता है अथवा उसमें जो अवधान किया जाता है, वह अवधि है। अवधि मर्यादा अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अथवा परम्परा कारण रूप से द्रव्यादि से अवधान किया जाता है, वह अवधि है। आचार्य पूज्यपाद ने भी सर्वार्थसिद्धि में अवधिज्ञान का यही स्वरूप बताया है।
वादिदेवसूरि (द्वादश शती) ने कहा है कि अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाला भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय, रूपी द्रव्यों को जानने वाला ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है।
मलधारी हेमचन्द्र (द्वादश शती) ने बृहद्वृत्ति में कहा है कि मन और इन्द्रिय की सहायता के बिना साक्षात् आत्मा से जो अर्थ को जानता है वह अवधि है, वह अवधि मर्यादा रूप है। 'अवधि' में 'अव' शब्द अव्यय होने से अनेक अर्थवाची है। यहाँ 'अव' 'अधः-अधः' के रूप में प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ है कि जो ज्ञान नीचे-नीचे विस्तार से रूपी वस्तु को जानता है वह अवधि है अथवा 'अव' अव्यय को मर्यादा वाचक के रूप में प्रयुक्त करते हैं तो अर्थ के अनुसार इतने क्षेत्र में, इतने द्रव्यों को, इतने काल तक जानने योग्य द्रव्यों को जानता है और इतना काल, इतना द्रव्य जानता है, इस प्रकार मर्यादा पूर्वक रूपी वस्तु को जानने वाला ज्ञान अथवा जो ज्ञान स्वयं आत्मा से रूपी वस्तुओं को साक्षात् जानता है वह अवधिज्ञान है। मलयगिरि (त्रयोदश शती) भी ऐसा ही उल्लेख किया है।"
घासीलालजी महाराज के अनुसार - वीर्यान्तराय के क्षयोपशम सहकृत अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होकर जो रूप, रस, गन्ध एवं स्पर्श गुण वाले पुद्गल द्रव्य को स्पष्ट जानता है, वह अवधिज्ञान है। नंदीसूत्र की टीका में भी ऐसा ही उल्लेख किया है।
कन्हैयालाल लोढ़ा का अभिमत है कि एकाग्र व शान्त चित्त से अंतर्मुखी हो कर आत्मप्रदेशों से रूपी पदार्थों का अनुभव करना अवधि दर्शन और उन्हें जानना अवधिज्ञान है। दिगम्बर आचार्यों की दृष्टि में
पूज्यपाद (पंचम-षष्ठ शती) के मन्तव्यानुसार - अधिकतर नीचे के विषय को जानने वाला होने से या परिमित विषय वाला होने से अवधि कहलाता है। 13. तेणावहीयए तम्मि वाऽवहाणं तओऽवही सो य। मज्जाया जंतीए दव्वाइ परोप्परं मणइ।-विशेषावश्यकभाष्य गाथा 82 14. अवधीयते इत्यवधिः, तेण वाऽवधीयते तम्हि वाऽवधीयते अवधाणं वाऽवधिः मर्यादेत्यर्थः, ताए परंप्परोपणिबंधणातो दव्वादतो
अवधीयते इत्यवधिः। - नंदीचूर्णि पृ. 20 15. अवधिज्ञानावरणविलयविशेषसमुद्भवं भवगुणप्रत्ययं रूपिद्रव्यगोचर-मवधिज्ञानम्। -प्रमाणनयतत्त्वलोक, अध्याय 2, सूत्र 21 15. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 82 बृहद्वृत्ति का भावार्थ 17. अव शब्दोऽध: शब्दार्थः । अव-अधोऽधो विस्तृतं वस्तु धीयते-परिच्छिद्यतेऽनेनेत्यवधिः । अवधिर्मर्यादा रूपिष्वेव द्रव्येषु परिच्छेदकतया
प्रवृत्तिरूपा तदुपलक्षितं ज्ञानमप्यवधिः । अवधानम्-आत्मनोर्थसाक्षात्करणव्यापारोऽवधिः।-मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. 65 18. तत्र वीर्यान्तराय क्षयोपशम-सहकृतादवधिज्ञानावरण-क्षयोपशमाज्जातं रूपिद्रव्यविषयं भवगुणप्रत्ययमवधिज्ञानम्।
- न्यायरत्नसार, अध्याय 2 सूत्र. 14 पृ. 34 19. द्रव्याणि मूर्तिमन्त्येव, विषयो यस्य सर्वतः नियत्यरहितं ज्ञानं, तत्स्यादवधिलक्षणम् । घासीलाल महाराज, नंदीसूत्र, पृ.15-17 20. बन्ध तत्त्व, पृ. 23
21. अवाग्धानादवच्छिन्नविषयाद्वा अवधिः । - सर्वार्थसिद्धि, पृ. 67