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चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान
[287] मतान्तर - अक्षर श्रुतज्ञान के ऊपर एक-एक अक्षर की वृद्धि होती है अर्थात् संख्यातभाग और संख्यातगुणा की वृद्धि होती है, शेष चार अन्य वृद्धियां नहीं होती हैं, क्योंकि अक्षरज्ञान सम्पूर्ण श्रुतज्ञान के संख्यातवें भाग जितना ही है, इसलिए अक्षर-ज्ञान में ऊपर वर्णित छह प्रकार की वृद्धियों का होना सम्भव नहीं है। इसलिए जो आचार्य ऐसा मानते हैं कि अक्षर श्रुतज्ञान से आगे भी श्रुतज्ञान छह प्रकार की वृद्धियों से बढ़ता है, उनका मानना सही नहीं है। 26 जबकि दूसरे आचार्यों के मत से एक अक्षरज्ञान के आगे दूसरे अक्षरज्ञान की उत्पत्ति युगपत् होती है, उनके अनुसार भी अक्षरज्ञान से आगे संख्यातगुण वृद्धि और संख्यातभाग वृद्धि ही संभव है। क्योंकि एक अक्षर श्रुतज्ञान समस्त श्रुतज्ञान के संख्यातवें भाग प्रमाण होता है इस कारण यह है कि अक्षरश्रुतज्ञानावरणीय कर्म की संख्यात प्रकृतियाँ बताई हैं ।27
5. पद - अक्षरश्रुत में संख्यात अक्षर मिलाने पर एक पद श्रुतज्ञान होता है। अथवा अक्षरों का वह समूह जिससे पूर्ण अर्थ का ज्ञान होता है, वह पद कहलाता है, ऐसे एक पद का ज्ञान होना पदश्रुत है। 28 पद के तीन भेद हैं - अर्थपद, प्रमाण पद और मध्यम पद। अर्थपद - जितने पदों से अर्थ का ज्ञान होता है, वह अर्थपद है। यह अनवस्थित (अनित) है अर्थात् एक, दो, तीन, चार, पांच, छह व सात अक्षर तक का पद अर्थ पद कहलाता है। प्रमाणपद - आठ अक्षर से निष्पन्न हुआ पद प्रमाण पद है। यह अवस्थित (नियत) है। मध्यमपद - मध्यमपद में 16348307888 (सोलह अरब चौतीस करोड़ तिरासी लाख सात हजार आठ सौ अठासी) अक्षर होते हैं और यह भी अवस्थित है। यहाँ तीनों पदों में से मध्यम पद अभिप्रेत है। समस्त श्रुत में कुल 1128358005 (एक सौ बारह करोड़ तिरासी लाख अट्ठावन हजार और पांच) ही पद होते हैं। धवलाटीकार ने इसका विस्तार से वर्णन किया है। 29
अक्षरज्ञान और पदज्ञान के मध्य का जितना भी ज्ञान है वह अक्षर समास है। इसी प्रकार पदज्ञान और संघातज्ञान के बीच का ज्ञान पदसमास ज्ञान है, ऐसा ही आगे भी समझ लेना चाहिए।
6. पद समास - मध्यमपद श्रुतज्ञान से एक अक्षर अधिक होने पर पदसमास श्रुतज्ञान है। अथवा पदों के समुदाय का ज्ञान होना पद समास श्रुत है।30 पद + एक अक्षर = पद समास, यह इसका प्रारंभबिन्दु है। यहाँ से शुरु करके संघात श्रुत में एक अक्षर कम रहे वहाँ तक पद समास
अधिकार है, अतः पदसमास का क्षेत्र विशाल है। जबकि पद का क्षेत्र मर्यादित है, क्योंकि पद में एक भी अक्षर अधिक होते ही पद संज्ञा समाप्त हो जाती है।
7. संघात - पद समास श्रुतज्ञान के ऊपर एक-एक अक्षर की वृद्धि होने पर संघात श्रुतज्ञान होता है। इसमें संख्यात पद होते हैं। मार्गणा ज्ञान का अवयवभूत ज्ञान संघात श्रुतज्ञान है। अथवा इस संघात श्रुतज्ञान की उत्पत्ति के हेतुभूत पदों का नाम संघात है। अथवा गति, इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाओं में से किसी एक मार्गणा के एक अंश का ज्ञान होना संघातश्रुत है। जैसे नरकादि चार गतियाँ हैं, इसी प्रकार एकेन्द्रियादि जातियां पांच है। इनमें से एक अंश का ज्ञान होना जैसे गति में मनुष्य गति का, इन्द्रिय में पंचेन्द्रिय का ज्ञान होना संघातश्रुत है। 31
8. संघात समास - पुनः संघात श्रुतज्ञान के ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होने पर संघात समास श्रुतज्ञान होता है। अथवा गति, इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाओं में से एक मार्गणा के सभी अंशों का
426. षट्खण्डागम, पु. 6, सू. 1.9.1.14, पृ. 22 428. कर्मग्रन्थ भाग 1 पृ. 20 430. कर्मग्रन्थ भाग 1 पृ. 20
427. षटखंडागम, पु. 13, सू. 5.5.48, पृ. 268 429. षटखंडागम, पु. 13, सू. 5.5.48, पृ. 263-266 431. कर्मग्रन्थ भाग 1 पृ. 20