SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [288] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन ज्ञान होना संघात समासश्रुत है । जैसे गति मार्गणा में चारों गतियों का, इन्द्रिय मार्गणा में पांचों जातियों का ज्ञान होना संघात समासश्रुत है । 132 9. प्रतिपत्ति - अनुयोगद्वार के जितने अधिकार होते हैं, उनमें से एक अधिकार को प्रतिपत्ति कहते हैं। संघातसमास ज्ञानपर एक अक्षर की वृद्धि होने पर प्रतिपत्ति श्रुतज्ञान होता है । अथवा गति, इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाओं में से एक मार्गणा के द्वारा समस्त संसारी जीवों का ज्ञान हो जाना प्रतिपत्तिश्रुत है। जैसे गति मार्गणा के नरकादि चार भेद हैं, इससे सभी संसारी जीवों का ज्ञान हो जाता है I 10. प्रतिपत्ति समास - अनुयोगद्वार के जितने अधिकार होते हैं, उनमें से एक अक्षर न्यून सब अधिकारों को प्रतिपत्ति समास कहते हैं । अथवा गति, इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणाओं में से दो, तीन मार्गणाओं से संसारी जीवों का ज्ञान हो जाना प्रतिपत्ति समास है। जैसे गति मार्गणा मे नरकादि चार गतियों से सभी संसारी जीवों का पांच इन्द्रियों से सभी संसारी जीवो का ज्ञान हो जाना प्रतिपत्तिसमास है । 11. अनुयोगद्वार प्रतिपत्तिसमास में एक अक्षर की वृद्धि होना अनुयोगद्वार श्रुतज्ञान है । प्राभृत के जितने अधिकार होते हैं, उनमें से एक-एक अधिकार को अनुयोगद्वार कहते हैं । अथवा सत्पद प्ररूपणा, द्रव्य प्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शना काल, अन्तर, भाग, भाव इन अनुयोगों में से किसी एक अनुयोग के द्वारा जीवादि पदार्थों को जानना अनुयोग श्रुत है । 12. अनुयोगद्वार समास अनुयोगद्वार श्रुतज्ञान में एक अक्षर की वृद्धि होना अनुयोगद्वार समास श्रुतज्ञान है । अथवा सत्पद प्ररूपणा, द्रव्य प्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शना, काल, आदि अनुयोगों में से दो-तीन अनुयोग के द्वारा जीवादि पदार्थों को जानना अनुयोग समास श्रुत है। 13. प्राभृत-प्राभृतश्रुत - संख्यात अनुयोगद्वारों को ग्रहण करना एक प्राभृतप्राभृत श्रुतज्ञान होता है। अथवा दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग सूत्र में प्राभृत-प्राभृत नामक अधिकार हैं, उनमें से किसी एक का ज्ञान होना प्राभृत- प्राभृतश्रुत है । - - 14. प्राभृत-प्राभृत समास प्राभृत-प्राभृत श्रुतज्ञान में एक अक्षर की वृद्धि होना प्राभृतप्राभृतसमास श्रुतज्ञान है। अथवा दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग सूत्र में प्राभृत-प्राभृत नामक अधिकार है, उसमें से दो-तीन का ज्ञान होना प्राभृत-प्राभृत समास श्रुत है । 15. प्राभृत श्रुत संख्यात प्राभृत-प्राभृतों को ग्रहण करना एक प्राभृत श्रुतज्ञान होता है। अथवा जैसे कई उद्देशकों को या वर्ग को मिलाकर एक अध्ययन या शतक होता है, उसी प्रकार कई प्राभृत-प्राभृतों को मिलाकर एक प्राभृत होता है । एक प्राभृत का ज्ञान होना प्राभृतश्रुत है। 16. प्राभृत समास - प्राभृत श्रुतज्ञान में एक अक्षर की वृद्धि होना प्राभृत समास श्रुतज्ञान है। अथवा दो-तीन प्राभृतों का ज्ञान होना प्राभृत समास श्रुत है । 17. वस्तु श्रुत- संख्यात प्राभृत को ग्रहण करना एक वस्तु श्रुतज्ञान होता है। पूर्व में श्रुतज्ञान के जितने अधिकार है, उनकी अलग-अलग वस्तु है । अथवा जैसे कई प्राभृतों को मिलाकर एक वस्तु नामक अधिकार होता है, ऐसी वस्तु का ज्ञान होना वस्तुश्रुत है। - - 18. वस्तु समास - वस्तु श्रुतज्ञान में एक अक्षर की वृद्धि होना वस्तु समास श्रुतज्ञान है । अथवा दो-तीन वस्तुओं का ज्ञान होना वस्तु समास श्रुत है। पूर्व गत के उत्पाद पूर्व आदि चौदह अधिकारों को यहाँ पूर्व कहा है। 432. कर्मग्रन्थ भाग 1 पृ. 20
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy