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चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान
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शैली में अन्तर है। किन्तु समवाय से नंदी की विषयसूची बहुत संक्षिप्त है। इससे यह प्रमाणित होता है कि नन्दी में दत्त विषयसूची प्राचीन है। इसके सिवाय नंदी की द्वादशांग की विषयसूची को लेकर जो पाठभेद पाये जाते हैं, निश्चय ही समवायांग के पाठों में उत्तम एवं प्राचीन है। 62 5. व्याख्या प्रज्ञप्ति (भगवती)
जिसके द्वारा जीवादि पदार्थों का विवेचन किया जाये, वह 'व्याख्या' है। जिसमें व्याख्या करके जीव आदि पदार्थों को समझाया जाता हो, वह 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' है। व्याख्यात्मक कथन होने से इसे व्याख्याप्रज्ञप्ति कहते हैं तथा पूज्य और विशाल होने से यह भगवती के नाम से प्रसिद्ध हैं। भगवती सूत्र में स्वसिद्धान्त, परसिद्धान्त, जीव, अजीव, लोक, अलोक आदि का वर्णन किया गया है साथ ही इसमें अनेक देव, राजा, राजर्षियों द्वारा पूछे गये प्रश्नों का श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने द्रव्य, गुण, क्षेत्र, पर्याय, प्रदेश, परिणाम, यथातथ्यभाव, अनुगम, निक्षेप, नय, प्रमाण, सूक्ष्म उपक्रम आदि विविध प्रकार से प्रकाशित तथा लोकालोक के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले विस्तृत संसार समुद्र को पार करवाने में समर्थ, भव्यजनों के चित्त को आनन्दित करने वाले, अज्ञान रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाले, दीपक के समान पदार्थों को प्रकाशित करके बुद्धि को बढ़ाने वाले, छत्तीस हजार प्रश्नों का उत्तर दिया है। जो कि अनेक प्रकार से श्रुतार्थ को प्रकाशित करने वाले महान् गुणों से युक्त शिष्यों के लिए हितकारी हैं। नंदीसूत्र के अनुसार इसके एक श्रुतस्कंध और एक सौ से कुछ अधिक शतक (अध्ययन) हैं। 36000 प्रश्नोत्तर हैं। 2 लाख 88 हजार पद हैं तथा वर्तमान में 1575 श्लोक परिमाण अक्षर हैं। आचारांग से लेकर समवायांग तक पदों का परिमाण दुगुना-दुगुना बताया गया है, किन्तु समावायांग सूत्र में व्याख्याप्रज्ञप्ति के पदों में द्विगुणता नहीं बतायी गई है, क्योंकि वहां पर चौरासी हजार पदों का स्पष्ट उल्लेख है, जो कि वर्तमान में उपलब्ध है। जबकि नन्दी में दो लाख 88 हजार पदों का उल्लेख करते हुए द्विगुणता का आश्रय लिया गया है।
दिगम्बर परम्परा के जयधवला ग्रन्थ के अनुसार जीव है या नहीं है? जीव एक है या अनेक है? जीव नित्य है या अनित्य है? जीव वक्तव्य है या अवक्तव्य है, तीर्थकर के पास में पूछे गये इस प्रकार के गणधर के साठ हजार प्रश्नों के उत्तर इस आगम में हैं तथा छियानवे हजार ज्ञापनीय शुभ और अशुभ का वर्णन है। इसमें दो लाख अठाई हजार पद हैं।
समीक्षा - दोनों परम्पराओं में भगवती की विषय वस्तु लगभग समान है। श्वेताम्बर परम्परा में छत्तीस हजार और दिगम्बर परम्परा में तत्वार्थवार्तिक में साठ हजार प्रश्नों के उत्तरों का उल्लेख है, जबकि जयधवला में साठ हजार प्रश्नोत्तरों के साथ 96 हजार छिन्नच्छेद नयों का भी वर्णन है।
भगवती सूत्र में वर्णित 36000 प्रश्नों के समाधान को प्राप्त कर नर से नारायण, पुरुष से पुरुषोत्तम, भक्त से भगवान् बन सकते हैं। ज्ञानादि सम्पूर्ण ऐश्वर्य से जो युक्त हो उसे भगवान् कहते हैं। इस सूत्र का अध्ययन करने से आत्मा ज्ञाता, विज्ञाता बनकर भक्त से भगवान् बन जाता है। यह सूत्र भक्त से भगवान् बनाता है इसलिये इसे भगवती सूत्र भी कहते हैं। आचाराङ्ग से लेकर दृष्टिवाद तक बारह अङ्ग सूत्र हैं उनमें दृष्टिवाद सबसे बड़ा अङ्ग सूत्र है। परन्तु वह तो प्रत्येक तीर्थङ्कर के दो पाट तक ही चलता है। फिर विच्छिन्न हो जाता है। इस समय दृष्टिवाद का विच्छेद हो जाने से विपाक सूत्र तक 11 अङ्ग ही उपलब्ध होते हैं। इन 11 अङ्गों में यह व्याख्या प्रज्ञप्ति अङ्ग सबसे बड़ा है। इसलिये भी इसे भगवती सूत्र कहते हैं। 362. जैन साहित्य का इतिहास, पूर्व पीठिका, पृ. 653-654 363. छिन्नो द्विधाकृतः पृथक्कृत: छेद: पर्यन्तो येन से छिन्नच्छेद: प्रत्येकं विकल्पित पर्यन्तः इत्यर्थ। - मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. 56