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चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान
[253] 7-10. सादि श्रुत, अनादि श्रुत, सादि सपर्यवसित श्रुत और अनादि अपर्यवसित श्रुत ____ जो श्रुत आदि सहित है, वह सादिश्रुत है। जो श्रुत अन्त सहित है, वह सपर्यवसित श्रुत है। जो श्रुत आदि रहित है, वह अनादिश्रुत है। जो श्रुत अन्त रहित है, वह अपर्यवसित श्रुत है। नंदीसूत्र और विशेषावश्यकभाष्य में सादि-सपर्यवसितश्रुत और अनादि-अपर्यवसितश्रुत का निरूपण नय, द्रव्यादि
और भव्यजीव की अपेक्षा से हुआ है। नय की अपेक्षा से
सादि-सपर्यवसितश्रुत और अनादि-अपर्यवसितश्रुत को नय की अपेक्षा से समझाते हुए जिनभद्रगणि कहते हैं कि द्रव्यास्तिक (नित्यवादी) नय की अपेक्षा से द्वादशांगी श्रुत पंचास्तिकाय के समान अनादि-अनन्त है। क्योंकि जीवद्रव्य ने श्रुत जाना था, जानता है और जानेगा, उस जीवद्रव्य का कभी नाश नहीं होगा। इस अपेक्षा से श्रुत अनादि अनन्त है। पर्यायास्तिक (अनित्यवादी) नय की अपेक्षा से यह द्वादशांगी श्रुत जीव की नारकादि पर्याय की अपेक्षा से अनित्य होने से सादि-सान्त है।60 नंदीसूत्र के टीकाकारों ने भी ऐसा ही उल्लेख किया है।261 द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से ___नंदीसूत्र को आधार बनाते हुए जिनभद्रगणि ने सादि-सपर्यवसितश्रुत और अनादि-अपर्यवसितश्रुत का द्रव्यादि की अपेक्षा से भी वर्णन किया है 62 यह वर्णन एक जीव और बहुत जीवों की अपेक्षा से है।
द्रव्य से - 1. एक पुरुष की अपेक्षा श्रुत सादि सपर्यवसित है263 श्रुत एक पुरुष की अपेक्षा सादि सपर्यवसित है, क्योंकि एक पुरुष की अपेक्षा सम्यक्श्रुत का आरंभ और व्यवच्छेद होता है अर्थात् एक पुरुष को सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है, तब उसके आचारांग आदि सम्यक्श्रुत का आरंभ होता है और पुनः यदि वह मिथ्यात्व में चला जाता है अथवा उसे केवलज्ञान हो जाता है, तो उसके सम्यक्श्रुत का व्यवच्छेद हो जाता है अथवा जब सम्यक्त्वी पुरुष, आचारांग आदि सम्यक्श्रुत सीखता है, तब उसके सम्यक्श्रुत का आरंभ होता है और जब वह प्रमाद, रोग, मृत्यु आदि कारणों से उसे भूल जाता है, तो उसके उस सीखे हुए सम्यक्श्रुत का व्यवच्छेद हो जाता है। इसके लिए जिनभद्रगणि ने मुख्य रूप से पांच हेतु दिये हैं - 1. मिथ्यादर्शन में गमन 2. भवान्तर में गमन 3. केवलज्ञान की उत्पत्ति 4. रोग 5. प्रमाद अथवा विस्मृति 64 ऐसा ही उल्लेख नंदीचूर्णि आदि में भी प्राप्त होता है। जिनदासगणि आदि आचार्य सपर्यवसित के उपरांत श्रुत के आदित्व की भी स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि पुरुष के संदर्भ में सर्वप्रथम श्रुत सीखने से श्रुत सादि होता है। हरिभद्र कहते हैं कि इसके बाद सम्यक्त्व प्राप्ति से भी श्रुत सादि बनता है। मलयगिरि का भी लगभग ऐसा ही मत है 65
2. बहुत पुरुषों की अपेक्षा सम्यक्श्रुत अनादि अपर्यवसित है, क्योंकि बहुत पुरुषों की अपेक्षा अर्थात् नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति में विविध सम्यग्दृष्टि जीवों के सम्यक्श्रुत तीनों काल में
260. से किं तं साइयं सपज्जवसियं, अणाइयं अपज्जवसियं च? इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं वुच्चित्तिणयट्ठयाए साइयं सपज्जवसियं अवुच्छित्तिणयट्ठयाए अणाइयं अपज्जवसियं। - नंदीसूत्र, पृ. 157, विशेषावश्यकभाष्य गाथा 537 261. नंदीचूर्णि पृ. 81, हारिभद्रीय, नंदीवृत्ति, पृ. 84, मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. 195 262. तं समासओ चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहा-दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ। - नंदीसूत्र, पृ. 157 263. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 538
264. विशेषावश्कभाष्य गाथा 539-540 265. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 540, नंदीचूर्णि पृ. 81, हारिभद्रीय, नंदीवृत्ति, पृ. 84, मलयगिरि, नंदीवृत्ति, पृ. 196