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चर्तुथ अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में श्रुतज्ञान
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सिद्धान्तवादी के मत से अनादि मिथ्यादृष्टि जीव तथाविध सामग्री मिलने पर अपूर्वकरण में तीनपुंज करके समकित मोहनीय रूप शुद्ध पुद्गल को वेदते हुए उपशम समकित को प्राप्त करने से पहले क्षयोपशम समकिती होता है।48 कुछ आचार्यों का मानना है कि यथाप्रवृत्त्यादि तीन करण करता हुआ जीव अन्तरकरण में उपशमसमकित प्राप्त करता है, लेकिन तीन पुंज नहीं करता है। उपशम समकित से भ्रष्ट हुआ जीव मिथ्यात्व को ही प्राप्त करता है। इसका समर्थन कल्पभाष्य में भी किया है। कर्मग्रंथ के अनुसार अनादि मिथ्यादृष्टि जीव यथाप्रवृत्त्यादि तीन करण और तीन पुंज करता हुआ उपशम समकित प्राप्त करता है। उपशम समकित की स्थिति अन्तर्मुहूर्त है। उसके पूर्ण होने पर जीव या तो क्षायोपशम समकित प्राप्त करता है, या मिश्रदृष्टि अथवा मिथ्यादृष्टि बन जाता है 49 2. सास्वादन समकित
मिथ्यात्व का उदय नहीं होते हुए अनन्तानुबंधी कषाय के उदय मात्र से कलुषित हुए आत्मपरिणाम तत्त्वश्रद्धानरूप रस के आस्वादन से सास्वादन सम्यक्त्व रूप है। अथवा जो समस्त प्रकार से (मुक्तिमार्ग से) भ्रष्ट करती है, वह आशातन (अनंतानुबंधीकषाय का वेदन), सहित होती है, वह साशातना (सासादण) सम्यक्त्व कहलाती है। इसका काल छह आवलिका का है।50 उपशम समकित के अन्तर्मुहूर्त काल में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह आवलिका शेष रहने पर अनन्तानुबंधी कषाय का उदय होने से औपशमिकसम्यक्त्व से गिरे हुए जीव को जब तक मिथ्यात्व की प्राप्ति नहीं हो तब तक रहने वाली सम्यक्त्व सास्वादन है। 3. क्षायोपशमिक समकित
उदय प्राप्त मिथ्यात्वमोहनीय का क्षय और अनुदय का उपशम, ऐसे मिथ्यात्व का क्षय और उपशम उभय रूप होने पर जो तत्त्वश्रद्धान होता है, वह क्षयोपशम समकित रूप है। जिसमें सम्यक्त्व मोहनीय का वेदन होता है।52 शंका - क्षायोपशमसमकित में उदय प्राप्त मिथ्यात्व का क्षय और अनुदय प्राप्त का उपशम बताया है। ऐसा ही लक्षण उपशम समकित में भी किया गया है, तो दोनों में क्या अन्तर है? समाधान - क्षयोपशमिक समकित में सम्यक्त्व मोहनीय रूप शुद्ध पुंज के पुद्गलों का वेदन होता है। जबकि उपशम समकित में किसी भी पुंज का वेदन नहीं होता है। उपशम समकित में मिथ्यात्व के दलिकों का प्रदेशोदय नहीं होता है, लेकिन क्षायोपशमिक समकित में मिथ्यात्व के दलिकों का प्रदेशोदय होता है। यह दोनों में अन्तर है।253 4. वेदक समकित
दर्शन सप्तक (अन्तानुबंधी चौक, मिथ्यात्व, मिश्र और समकित मोहनीय) का बहुत भाग क्षय किये हुए जीव के जब दर्शन मोहनीय का अंतिम अंश अनुभव (वेदन) होता है तो वह वेदक समकित कहलाती है। शंका - क्षयोपशमसमकित में भी सम्यक्त्व मोहनीय का वेदन होता है, तो दोनों में क्या अन्तर है? समाधान - क्षयोपशमसमकित में तो समस्त शुद्ध पुंज के उदय का अनुभव
248. सैद्धांतिकानां तावदेतद् मतं यदुत-अनादिमिथ्यादृष्टिः कोऽपि तथाविध सामग्रीसद्भावेऽपूर्वकरणेन पुंजत्रयं कृत्वा शुद्धपुंजपुद्गलान् वेदयन्नौपशमिकं सम्यक्त्वमलब्ध्वैव प्रथमत एव क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टिर्भवति।
- मलधारी हेमचन्द्र, बृहवृत्ति,गाथा 530, पृ. 242 249. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 530 एवं बृहद्वृत्ति
250. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 528 एवं बृहद्वृत्ति 251, विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 531 एवं बृहद्वृत्ति
252. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 528 एवं बृहवृत्ति 253. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 532 एवं बृहवृत्ति
254. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 528 एवं बृहद्वृत्ति