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तृतीय अध्याय - विशेषावश्यकभाष्य में मतिज्ञान
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3. क्षेत्र द्वार
यहाँ क्षेत्र का अर्थ अवगाहना क्षेत्र है। मतिज्ञानी का शरीर लोक के कितने भाग को अवगाहित करता है। सभी जीवों की अपेक्षा आभिनिबोधिक ज्ञान वाले लोक के असंख्यातवें भाग में व्याप्त होते हैं। उससे उनका क्षेत्र भी लोक के असंख्यातवें भाग जितना है। लेकिन एक जीव की अपेक्षा से मतिज्ञान का क्षेत्र सात रज्जु प्रमाण है। क्योंकि ऊर्ध्वलोक में विग्रहगति (ईलिका गति की अपेक्षा से) निरन्तर और अपान्तर स्पर्श करता हुआ जीव अनुत्तर विमान में जाता है अथवा वहाँ से आता है, इस प्रकार सात रज्जु प्रमाण क्षेत्र होता है। इसी प्रकार अधोलोक में इसी गति से छठी नारकी में जीव जाते हैं अथवा वहाँ से आते हैं, इसकी अपेक्षा पांच रज्जु प्रमाण क्षेत्र मतिज्ञानी का होता है। सिद्धान्तवादियों का मत है कि सम्यक्त्व प्राप्त करके जिन्होंने सम्यक्त्व की विराधना की है, वे ही छठी नारकी में जाते हैं, लेकिन क्षयोपशम सम्यक्त्व ग्रहण करके कोई छठीं नरक में उत्पन्न नहीं होते हैं। कर्मग्रन्थ के अनुसार वैमानिक देव को छोड़कर मनुष्य अथवा तिर्यंच क्षयोपशम सम्यक्त्व का वमन करके छठी नरक में उत्पन्न होते हैं, किन्तु सम्यक्त्व को ग्रहण करके नहीं होते हैं। सातवीं नारकी में दोनों के मत से सम्यक्त्व का त्याग करके ही जीव उत्पन्न होते हैं। जिन्होंने सम्यक्त्व ग्रहण की है, ऐसे जीव न तो सातवीं नारकी में जाते हैं और नहीं वहाँ से आते हैं। यह सिद्धान्त का मत है। क्योंकि सातवीं नारकी से निकले हुए जीव नियमा तिर्यंच पंचेन्द्रिय में ही उत्पन्न होते हैं, मनुष्य में नहीं। इसका आगम में स्पष्ट उल्लेख है। (प्रज्ञापना सूत्र पद 6, छोटी गतागत) इसलिए सातवीं नारकी में जाते और आते समय जीव नियमा मिथ्यात्वी होते हैं। देव और नारकी सम्यक्त्व सहित मनुष्यगति में ही आते हैं। 35 4. स्पर्शन द्वार
स्पर्शन द्वार भी क्षेत्र द्वार के समान है। प्रश्न - दोनों का अलग कहने का क्या कारण है? उत्तर - जितने प्रदेशों को शरीर अवगाहित करके रहता है, उतने क्षेत्र को क्षेत्रावगाहना कहते हैं तथा अवगाढ़ क्षेत्र (अर्थात् शरीर जितने क्षेत्र को अवगाहित करके रहा हुआ है, वह क्षेत्र) और उसका पार्श्ववर्ती क्षेत्र जिसके साथ शरीर प्रदेशों का स्पर्श हो रहा है, वह स्पर्शनाक्षेत्र कहलाता है। यह दोनों में अन्तर है।
आगम में एक प्रदेश को अवगाहित करके रहने वाले परमाणु की अवगाहना एकप्रदेश की और सात प्रदेश की उसकी स्पर्शना कही गई है। क्योंकि जो एक प्रदेश को अवगाहित करके रहता है, एक प्रदेश और शेष छह दिशाओं के छह आकाश प्रदेशों को मिलाकर परमाणु की सात प्रदेश की स्पर्शना होती है।
दूसरी अपेक्षा जितना अवगाहित करके रहता है, वह क्षेत्र कहलता है और विग्रहगति में जितना क्षेत्र स्पर्श करता है, वह स्पर्शना कहलाती है।
आभिनिबोधिक ज्ञान वाले एक जीव की जो क्षेत्र स्पर्शना है, उसकी अपेक्षा सभी आभिनिबोधिक ज्ञान वाले जीवों की क्षेत्र-स्पर्शना असंख्यातगुणी अधिक है, क्योंकि सभी आभिनिबोधिकज्ञान वाले असंख्यातगुणा अधिक हैं।37 535. विशेषावश्यकभाष्य गाथा 430-431 536. युवाचार्य मधुकरमुनि, भगवतीसूत्र भाग 4, पृ. 442 537. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 432-434