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तृतीय अध्याय
विशेषावश्यक भाष्य में मतिज्ञान
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बहने में मात्र एक जलबिन्दु चाहिए, वैसे ही श्रोत्रेन्द्रिय का व्यंजनावग्रह पूरा होने के पश्चात् श्रोत्रेन्द्रिय का अर्थावग्रह होने में एक समय लगता है । 179
प्रश्न- एक समय के अर्थावग्रह में उपयोग कैसे लेगेगा ?
उत्तर
अंतिम समय है अथवा असंख्य समयों में उपयोग लगे उसका पहला समय है ।
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अर्थावग्रह का जो एक समय है वह ज्ञान तंतुओं में झंकृत होने वाले समयों में
प्रश्न - अर्थावग्रह के लिए नंदीसूत्र में जो मल्लकादि के दृष्टान्त दिये हैं, वे नैश्चयिक अर्थावग्रह के है अथवा व्यावहारिक अर्थावग्रह के हैं ?
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उत्तर - अर्थावग्रह के लिए जो भी दृष्टान्त दिये गए हैं, वे व्यावहारिक अर्थावग्रह के हैं, क्योंकि दृष्टान्त वही दिया जाता है। जो कि अनुभव गम्य हो और शब्द द्वारा प्रकट किया जा सकता हो । नैश्चयिक अर्थावग्रह एक समय का होने से उसका ज्ञान इतना अव्यक्त है कि 'छद्मस्थ उसका अनुभव नहीं कर सकते हैं और केवली उसे जानते हुए भी प्रकट नहीं कर सकते हैं।' व्यावहारिक अर्थावग्रह ही ऐसा है, जो छद्मस्थ के लिए अनुभव गम्य है और वाणी द्वारा प्रकट किया जा सकता है। इसीलिए उसका नाम व्यावहारिक रखा गया है। ईहा आदि के जो दृष्टान्त होंगे, वे भी व्यावहारिक अर्थावग्रह के बाद ही घटित होंगे।
ईहा और अवाय आवश्यक नियुक्ति में ईहा और अवाय के कालमान के सम्बन्ध में पाठभेद है। जिनभद्रगणि स्वोपज्ञ, हारिभद्रीय आवश्यकटीका, आवश्यकनिर्युक्ति दीपिका और मलयगिरि आवश्यकवृत्ति में ‘ईहावाया मुहुत्तमन्त तु 480 पाठ है, जिनभद्रगणि ने इसका अर्थ अन्तर्मुहूर्त्त किया है। जबकि नंदीसूत्र में 'ईहावाया मुहुत्तमद्धं तु '481 पाठ है, जिसका अर्थ है कि ईहा और अवाय का काल अर्द्धमुहूर्त का है। इसी प्रकार नंदीसूत्र में ही उल्लेख है कि 'अंतोमुहुत्तिया ईहा, अंतोमुहुत्तिए अवाय '482 जिसका अर्थ है कि ईहा अवाय का अन्तर्मुहूर्त्त है, यह मतान्तर है । नंदी के टीकाकार हरिभद्र और मलयगिरि दूसरे पाठ का अनुसरण करके इसका अर्थ अर्द्धमुहूर्त (24 मिनिट) करते हैं। जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण के मत को पाठान्तर से स्वीकार करते हैं एवं हरिभद्रसूरि दोनों पाठों में सम्बन्ध स्थापित करते हुए कहते हैं कि ईहा का मुहूर्त्तार्द्ध काल व्यवहार की अपेक्षा से है ।1483 वास्तव में ईहा और अवाय का कालमान अन्तर्मुहूर्त का ही है 1984 कोट्याचार्य कृत विशेषावश्यकभाष्य की टीका में भी 'मुहत्तमन्तं' को पाठभेद के रूप में स्वीकार किया गया है। 485 इससे ऐसी संभावना की जा सकती है कि उस समय में 'मुहुत्तमद्धं' पाठ विशेष प्रचिलत रहा होगा। इसीलिए नंदीसूत्र का स्पष्ट पाठ होते हुए भी हरिभद्र एवं मलयगिरि ने 'मुहुत्तमद्धं' को महत्त्व दिया है।
धारणा - धारणा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त तथा उत्कृष्ट संख्यात / असंख्यात काल की होती है ।
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479. पारसमुनि, नंदीसूत्र, पृ. 194
480 उग्गहो एक्कं समयं ईहावाया मुहूत्तमन्तं तु । कालमसंखं संखं च धारणा होति णातव्या । आ० निर्युक्ति 4, वि०भाष्य 333
481. युवाचार्य मधुकरमुनि, नंदीसूत्र पृ. 143
482. युवाचार्य मधुकरमुनि, नंदीसूत्र पृ. 134
483. तावीहापायौ मुहूर्त्तार्द्ध ज्ञातव्यौ भवतः, तत्र मुहूर्त्तशब्देन घटिकाद्वयपरिणामः कालोऽभिधीयते तस्यार्धं मुहूर्त्तार्थं ।...... व्यवहारापेक्षयैतन्मुहूर्त्तार्धमुक्तं, तत्त्वतस्त्वन्तर्मुहूर्त्तमवसेयमिति । - हारिभद्रीय नंदीवृत्ति, पृ. 69
484. आवश्यक निर्युक्ति 4, नंदीसूत्र 60, विशेषावश्यकभाष्य गाथा 333
485. कोट्याचायवृत्ति, विशेषावश्यकभाष्य गाथा 333