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________________ [112] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहवृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन योगदर्शन 1. योगदर्शन में यथार्थ ज्ञान रूप तीन प्रमाण स्वीकार किये गये हैं - प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द। 2. योगदर्शन में स्वप्न को एक प्रकार की स्मृति माना है,268 जबकि जैनदर्शन स्वप्न को स्मृति रूप स्वीकार नहीं करता है। 3. योगदर्शन के अनुसार ज्ञान आकाश की तरह अनन्त है, जबकि ज्ञेय अल्प है। जैनदर्शन में अभिलाप्य और अनभिलाप्य ज्ञान की अपेक्षा ज्ञेय अल्प है। ___4. योगदर्शन मान्य तमोगुण ही जैनदर्शन में मान्य ज्ञानावरण, दर्शनावरण और मोहनीय कर्म हैं, क्योंकि योगदर्शन में तमो गुण को ज्ञानावरण कहा है।269 5. योग दर्शन जैनदर्शन की भांति निद्रा में ज्ञान स्वीकार करता है। 6. योगदर्शन में मान्य अतीत-अनागत ज्ञान और जैनदर्शन मान्य अवधिज्ञान आदि ज्ञान भूत भविष्य की बात जानते हैं 70 7. योगदर्शन सम्मत भुवन ज्ञान और जैनदर्शन सम्मत अवधिज्ञान दोनों में अनेक लोक को देखने की शक्ति है 71 8. योगदर्शन गत कैवल्य ज्ञान का वर्णन जैनदर्शन के केवलज्ञान के साथ बहुत मिलता है, जैसे कि दोनों सर्वविषयक हैं और त्रिकालगोचर विषयों की सभी पर्यायों को एक साथ जानते हैं 72 बौद्धदर्शन ____ 1. बौद्धदर्शन में भी जैनदर्शनानुसार पांच प्रकार का आवरण माना है, जिसको पांच नीवरण कहतेहैं। 2. बौद्धदर्शन में ज्ञान के चार कारण माने हैं - 1. आलम्बन 2. समनन्तर 3. सहकारी 4. अधिपति प्रत्यय। 3. बौद्धदर्शन में भी ऐन्द्रियक और अतीन्द्रिय ज्ञान दर्शन के लिए जैनदर्शन के समान 'जाणइ' और 'पासइ' क्रिया का प्रयोग हुआ है।73 4. बौद्ध के अनुसार आश्रवक्षय ज्ञान (आस्रवों के क्षय का ज्ञान) ही उच्चतम है, क्योंकि वह मात्र अर्हन्त को ही प्राप्त होता है। इस ज्ञान की तुलना जैनदर्शन के केवलज्ञान के साथ कर सकते हैं 74 6. जैनदर्शन के दर्शनोपयोग और बौद्धदर्शन के प्रत्यक्ष का अर्थ जीव में पदार्थ का प्रतिबिम्बित होना ही है अर्थात् बौद्धदर्शन में जो प्रत्यक्ष का लक्षण निर्विकल्पक ज्ञान है वही जैनदर्शन में दर्शनोपयोग है। बौद्ध दर्शन में निर्विकल्पक ज्ञान (दर्शनोपयोग) को प्रमाण रूप में स्वीकार किया गया है, जबकि जैनदर्शन में इसको प्रमाण रूप स्वीकार नहीं किया गया है। 7. बौद्धदर्शन निर्विकल्पक प्रत्यक्ष के बाद सविकल्पक ज्ञान का क्रम माना है, यह जैन दर्शन द्वारा मान्य दर्शन-ज्ञान के समान है। 75 268. योगभाष्य 1.11 270. योगभाष्य 3.16 272. योगभाष्य 3.54 274. जयतिलक पृ. 438 परि.752 269. योगभाष्य 3.43, 4.31 271. योगभाष्य 3.16 273. जयतिलक पृ. 418-19, 432 275. दर्शनपूर्व ज्ञानमिति ..... चित्यात्। ज्ञानबिन्दुप्रकरण, पृ. 43
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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